नई दिल्ली – मानसून की तेज़ बारिश और भीषण गर्मी ने भारत के शहरी इलाकों में जल आपूर्ति की स्थिति बिगाड़ दी है। सड़कों पर पानी भरने लगा है, पाइपलाइनें जवाब देने लगी हैं, और घरों में पानी की सप्लाई या तो बाधित हो रही है या अचानक बिल बहुत ज़्यादा आ रहे हैं। इस पूरी समस्या के पीछे एक ऐसा यंत्र है जो अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है वॉटर मीटर, जो चुपचाप हमारे पानी के इस्तेमाल को मापता है। लेकिन हर मीटर एक जैसा नहीं होता, और इस बात की अनदेखी करना अब शहरों और नागरिकों दोनों को भारी पड़ रहा है।बिना प्रमाण-पत्र वाले सस्ते मीटरों के बढ़ते इस्तेमाल ने पानी के प्रबंधन को मुश्किल बना दिया है।कोणार्क मीटर्स के मैनेजिंग डायरेक्‍टर,रघुनंदन प्रसाद कहते हैं कि एक खराब मीटर न केवल आपके घर का खर्च बढ़ाता है, बल्कि शहर की निष्पक्ष और टिकाऊ जल वितरण प्रणाली को भी कमजोर करता है।शहरों में नकली या बिना प्रमाणित वॉटर मीटरों का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। ये सस्ते मीटर बिना किसी कैलिब्रेशन, टेस्टिंग या निगरानी के बेचे और लगाए जा रहे हैं। इन्हें न तो भारतीय मानक ब्यूरो की मंज़ूरी प्राप्त होती है और न ही इनका निर्माता जवाबदेह होता है।एक आम शिकायत है ‘एयर-ट्रिगर्ड ओवरबिलिंग’ यानी हवा की वजह से मीटर का घूमना। गर्मियों में जब पानी की सप्लाई रुक-रुककर होती है, तो पाइप में हवा के बुलबुले भी मीटर को ऐसे घुमा देते हैं जैसे पानी बह रहा हो। इससे खपत का गलत आंकड़ा दर्ज होता है और बिल अधिक आता है। इसके अलावा नकली वॉटर मीटर सिर्फ घरों के लिए ही परेशानी नहीं हैं, बल्कि ये पूरे शहर की जल व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं। इन मीटरों से मिली गलत रीडिंग की वजह से नगरपालिकाएं न तो पानी के इस्तेमाल के पैटर्न को सही तरीके से समझ पाती हैं, न ही समय पर रिसाव का पता लग पाता है, और न ही जल आपूर्ति का कुशल प्लान तैयार कर पाती हैं। जिन हाउसिंग सोसाइटीज़ में ऐसे मीटर लगे होते हैं, वहां बिल को लेकर विवाद, रखरखाव की ज़्यादा लागत और उपभोक्ताओं के बीच झगड़े आम बात हो जाते हैं। आगे कोणार्क मीटर्स के मैनेजिंग डायरेक्‍टर,रघुनंदन प्रसाद कहते हैं कि आज जब शहर डिजिटल वॉटर नेटवर्क और हर मौसम में टिकने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रहे हैं, तब गैर-प्रमाणित मीटर एक बड़ी बाधा बनते जा रहे हैं। राष्ट्रीय मानकों के अनुसार तैयार मीटर ही एक निष्पक्ष, पारदर्शी और भरोसेमंद जल वितरण व्यवस्था की नींव होते हैं, जो मानसून की बारिश हो या लू की तपिश हर परिस्थिति में सटीक माप सुनिश्चित करते हैं।बीआईएस द्वारा प्रमाणित मीटरों को सटीकता, दबाव, तापमान और निर्माण गुणवत्ता जैसी बातों के लिए कड़े परीक्षणों से गुजारा जाता है। मानसून की तेज बारिश हो या भीषण गर्मी – ये ISI सर्टिफाइड मीटर भारत की मौसमीय परिस्थितियों में भी सटीकता बनाए रखते हैं। इन असली और प्रमाणित मीटरों में छेड़छाड़ से सुरक्षित सील, जंग-रोधी सामग्री और बेहतर फ्लो कैलिब्रेशन जैसी खूबियां होती हैं। ये मीटर लाइसेंस प्राप्त निर्माताओं से आते हैं, जिन पर कानूनी जवाबदेही होती है, वारंटी मिलती है और सबसे ज़रूरी बात ये मीटर यह सुनिश्चित करते हैं कि उपभोक्ता को केवल उसी पानी के लिए भुगतान करना पड़े, जितना वास्तव में उपयोग हुआ हो।गैर-प्रमाणित मीटरों के खतरे को समझते हुए सरकार ने 5 सितंबर 2024 से 50 मिमी तक के घरेलू जल मीटरों के लिए बीआईएस प्रमाणन अनिवार्य कर दिया है। 5 सितंबर 2024 के बाद बिना आईएसआई मार्क वाले कोई भी मीटर न तो भारत में बेचे जा सकेंगे और न ही इंस्टॉल किए जा सकेंगे चाहे वे देश में बने हों या आयातित। जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम लगातार अनिश्चित होता जा रहा है, और ऐसे में पानी की सुरक्षा पहले से कहीं ज़्यादा अहम हो गई है। ऐसे समय में कोई चूक अब माफ़ नहीं है। सरकार का क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर, जो घरेलू उपयोग के लिए आईएसआई -प्रमाणित मीटर को अनिवार्य बनाता है, पहले ही लागू हो चुका है। अब इसका पालन न करना सिर्फ जोखिम भरा नहीं, बल्कि गैरकानूनी भी है।पुराने और गैर-प्रमाणित मीटरों को हटाकर आईएसआई मार्क वाले मीटर लगाएं, जो आपको सटीक रीडिंग, कानूनी सुरक्षा और हर मौसम में भरोसेमंद प्रदर्शन सुनिश्चित करते हैं।

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