इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य एवम साहित्यकार राजीव आचार्य कहते है कि हम पाषाण युग , लौह युग , हिमयुग , ताम्र युग आदि में रह चुके है और अब प्लास्टिक युग में जी रहे है । आज हमारे जीवन का प्रत्येक हिस्सा प्लास्टिक से जुड़ा हुआ है । राजीव आचार्य के अनुसार प्लास्टिक एक स्लो पॉइजन है जो हमारे पर्यावरण के साथ साथ मानव जीवन को भी धीरे धीरे अपने चंगुल में ले रहा है । विश्व के वैज्ञानिक इस विषय पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार पूरे विश्व से निकले वाला कचरा वर्ष 2060 तक लगभग तीन गुना तक बढ़ सकता है । वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन होता है। परंतु कुल प्लास्टिक में से मात्र 10 प्रतिशत से भी कम प्लास्टिक को रीसाईकिल किया जा पा रहा है । ऐसे में प्लास्टिक का रिसाइकल भी समस्या का समाधान नही है । राजीव आचार्य कहते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक की बात करें तो पाएंगे कि उसका उपयोग व्यापक रूप से होता है, लेकिन यह पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों को प्राकृतिक रूप से समाप्त होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं और इससे प्रदूषण बढ़ता है और पर्यावरण प्रभावित होता है ।
बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक एक महत्वपूर्ण समाधान
राजीव आचार्य के अनुसार विश्वभर में सिंगल यूज प्लास्टिक के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए, बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर रहा है। अभी हाल ही में हुए एक शोध जो कि इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित हुआ , उसमें बताया गया है कि प्लास्टिक को बायोडिग्रेडेबल के विकल्पों के जरिए बदले जाने से कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आएगी। इस शोध में यह भी बताया गया है कि पारंपरिक प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक उत्पादों के जीवन चक्र की तुलना करके उनसे उत्पन्न होने वाले कार्बन उत्सर्जन का पता लगाया गया । इनमें प्लास्टिक के कच्चे माल को इकट्ठा करना, प्लास्टिक उत्पादन, उत्पाद निर्माण और कचरे का निपटान शामिल है। शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक बैग, लंच बॉक्स और कप सहित 1000 पारंपरिक प्लास्टिक वस्तुओं पर शोध किया था। उन्होंने पाया कि बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक , पारंपरिक प्लास्टिक की अपेक्षा कार्बन उत्सर्जन में अत्यंत कमी लाता है। इस कारण यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है ।
बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक क्या है?
राजीव आचार्य कहते है कि बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक वह प्लास्टिक है जो माइक्रोऑर्गेनिज्म द्वारा प्राकृतिक रूप से नष्ट हो सकता है। इसमें कोई हानिकारक अवशेष नहीं बचते, जिससे यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है। बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक का निर्माण जैविक स्रोतों जैसे कि पौधे, फसल अवशेष और बायोमास से किया जाता है। यह पारंपरिक पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक से भिन्न होता है।
विश्व स्तर पर इस पर कार्यवाही
संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए नए कानून लागू किए हैं। ये कानून पारंपरिक प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं और उन व्यवसायों को प्रोत्साहन देते हैं जो स्थायी तौर पर बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक को अपनाते हैं।
कई देशों ने रिसर्च बजट को बढ़ाया
जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक पर रिसर्च करने के लिए आवंटित किए गए बजट को बढ़ाया है। ये प्रयास नए सामग्रियों के विकास और बायोडीग्रेडेबल विकल्पों की दक्षता में सुधार के संबंध में हैं, ताकि उनके पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।
भारत में भी बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक पर कदम
जून 2024 में ग्रेटर नोएडा में बायोडीग्रेडेबल एक्सपो का आयोजन भी किया गया । यह एक्सपो बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक और कम्पोस्टेबल उत्पादों के उद्योग के हिस्सेदारों को एक साथ लेकर आया। इसमें कम्पोस्टेबल पैकेजिंग समाधान पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित की गई और इस क्षेत्र में नवाचार करने वालों को पुरस्कार दिए गए।
कंपनियों ने की शुरुआत
कोका कोला और पेप्सी जैसी कंपनियों ने अपनी पैकेजिंग में बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक को शामिल करने का संकल्प लिया है। वे इसके लिए कुछ स्टार्टअप्स के साथ साझेदारी कर रहे हैं, ताकि पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने वाले नए पैकेजिंग समाधान तैयार किए जा सकें। राजीव आचार्य के अनुसार प्लास्टिक युग से निपटने के लिए बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक एक समाधान हो सकता है ।इस पर सभी को मिलकर कार्य करने की आवश्कता है ।
राजीव आचार्य