गुरुग्राम – मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार छोटे बच्चों में तेजी से फैलने वाली एक गंभीर बीमारी- रेस्पिरेटरी सिंसिशियल वायरस पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। यह वायरस पाँच साल से छोटे बच्चों और नवजातों के सीने में इन्फेक्शन करता है, और छोटे बच्चों के यह फेफड़ों में संक्रमण का बड़ा कारण बनता है। आरएसवी को मौसमी सर्दी-खाँसी समझ कर लाख बच्चों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और कई बच्चों की जान चली जाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि आरएसवी का असर सिर्फ बीमार या कमजोर बच्चों पर नहीं होता, बल्कि कई बार बिल्कुल स्वस्थ और समय पर जन्मे बच्चों को भी ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत पड़ जाती है।इस पर बताते हुए भारतीय पीडियाट्रिक्स एकेडमी के मौजूदा नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. वसंत एम. खलटकर ने कहा, आरएसवी आज भी छोटे बच्चों की सेहत के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। हाथ धोने जैसे सफाई के उपाय जरूरी हैं, लेकिन एक साल से छोटे बच्चों के लिए सिर्फ ये ही काफी नहीं होते। हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने जो लंबी अवधि तक असर करने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को लेकर सिफारिश की है और भारत में अब ये उपाय उपलब्ध हो रहे हैं। अब तक जिन बच्चों को संक्रमण का अधिक खतरा होता था हाई-रिस्क शिशु, उन्हें पालिविज़ुमैब नाम की दवा दी जाती थी, जो आरएसवी सीज़न में एक ही बार दी जाती है और पूरे सीज़न तक असर करती है। लेकिन, अब नर्सेवीमैब नाम की नई दवा उपलब्ध है, जो सिर्फ एक बार देने से पूरे सीज़न तक बच्चों को आरएसवी से बचा सकती है। यह एक लम्बी असर करने वाली एंटीबॉडी है, जो इस क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति मानी जा रही है। इसे बच्चे के जन्म के थोड़े समय बाद या फिर नियमित चेकअप के दौरान दिया जा सकता है। इससे बच्चों को ब्रोंकियोलाइटिस और निमोनिया जैसी गंभीर दिक्कतों से बचा सकते हैं। सैनोफी के इंटरनेशनल रीजन मेडिकल हेड डॉ. सीज़र मास्केरेनस ने कहा, हम लंबे समय से ऐसे वैज्ञानिक उपायों पर काम कर रहे हैं, जो समय के साथ बदलती अंतर्राष्ट्रीय सिफारिशों- खासकर डब्ल्यूएचओ जैसी संस्थाओं की गाइडलाइंस के अनुरूप हों, ताकि बचाव से जुड़ी जरूरी खामियों को दूर किया जा सके। भारत में आरएसवी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए उन्नत बचाव उपाय और बच्चों को समय पर संक्रमण से बचाव के लिए टीके लगवाना बेहद जरूरी कदम हैं, ताकि पीढ़ियों की सेहत को सुरक्षित रखा जा सके। इस पर बताते हुए, डॉ. रेड्डीज़ में मेडिकल अफेयर्स के प्रमुख, डॉ. भावेश कोटक ने कहा, दुनियाभर में आरएसवी का जो प्रभाव है, उसमें भारत की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। ऐसे में जरूरी है कि लोगों में आरएसवी की गंभीरता को लेकर जागरूकता बढ़ाई जाए और टीकाकरण के इन नए एवं प्रभावी उपायों को आसानी से उपलब्ध कराया जाए।अप्रैल 2025 में सैनोफी और डॉ. रेड्डीज़ अपनी साझेदारी का और विस्तार कर रहे हैं, ताकि भारत में एक नई और सिर्फ एक बार दी जाने वाली रोकथाम संबंधी टीकाकरण व्यवस्था लाई जा सके। इसका उद्देश्य बच्चों को आरएसवी से जुड़ी गंभीर जटिलताओं से बचाना है।

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