नई दिल्ली- दिशा ग्रुप ऑफ विजुअल एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स ने संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से आठ जनवरी, बुधवार को मित्र रंगमंच सभागार पटपड़गंज में इस नाटक का रंगारंग मंचन किया। नाटक का निर्देशन, युवा निर्देशिका संपा मंडल ने किया। नाटक का आयोजन डॉ. सत्य प्रकाश ने किया, जिसमें गगन, शिखा आर्य, वारिस हुसैन, रवि, संतुष्टि, दक्ष शर्मा, आदित्य, शिवा, पुष्कर सागर, शिल्पा आर्य, प्रवीण भारती, आस्था शर्मा, मनी थरेजा, आदित्य भुकल, नीरज सिंह, अनंत तिवारी, नीतीश आदि कलाकारों ने भाग लिया। दया प्रकाश सिन्हा द्वारा लिखित नाटक सांझ सबेरा पहली बार 1959 में मंचित हुआ था। तब भी यह नाटक लोगों के बीच चर्चित रहा था और आज जब लोग उनके लिखे इस नाटक को मंचित कर रहे हैं, तो भी दर्शकों की खूब वाहवाही मिल रही है।नाटक का अगला मंचन 11 जनवरी को पंजाब के अमृतसर में होगा। संस्कृति मंत्रालय के वित्तीय सहयोग से दिशा ग्रुप ऑफ विजुअल एवं परफार्मिंग आर्ट्स, इंडियन अकादमिक ऑफ फाइन आर्ट्स के सहयोग से अमृतसर स्थित सरदार धर्मसिंह इंजीनियर सभागार में सांझ सबेरा का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन संपा मंडल ही करेंगी।सांझ सबेरा की प्रस्तुति बहुत ही सरल लेकिन समाज पर गहरी छाप छोड़ती है। अगर मैं समसामयिक जीवन को देखूं तो इसमें वे सारे विषय हैं जिन पर हम प्रकाश डाल सकते हैं, जैसे कि मां बाप का बच्चों के प्रति स्नेह, बच्चों का मां बाप के प्रति कर्तव्य, एक लड़की की इच्छाएं, भौतिक और अलौकिक सोच को लेकर चर्चा, अपने विचारों को एक निष्कर्ष तक पहुंचाना, पारिवारिक और सामाजिक लड़ाई, भीतरी और बाहरी दुनिया की लड़ाई, जो कभी न खत्म होने वाली है, जिसमें कोई न कोई पिसता ही जाता है। परिस्थिति के आगे समर्पण कर देना या मुश्किल घड़ी में भी अटल रहना। इस नाटक में युवा पीढ़ी की सोच के साथ वृद्धों की अनुभवों की लड़ाई है। इस नाटक के पहले भाग में जीवन जीने की शैली को दिखाया गया है। नाटक का पात्र शीतल प्रसाद एक भावुक, धार्मिक, मानवीय इंसान है, जो सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। वह परिवार के साथ साथ बाहरी दुनिया के संपर्कों को भी महत्व देते हैं। तभी तो आस पड़ोस के लोगों का जमावड़ा इनके घर में ही होता था। भले इस परिवार में पैसे की कमी हो लेकिन मन के बहुत अच्छे हैं। पहले भाग में शोभना मतलब घर की बेटी की शादी होने वाली है और सब लोग खुश हंै। उसकी दोस्त सीमा भी आती है जो निखिल को मन ही मन पसंद भी करती है। घर का बेटा निखिल और छोटा बेटा मुन्ना, और पड़ोस से आए हुए धनीराम, परमा चाची, भाभी, नीली भी आते है संगीत की तैयारी करने। लेकिन अचानक से मां आके बोलती है कि घर में से सारे पैसे चोरी हो गए। तभी सब लोग उदास हो जाते है। दूसरे भाग में सब लोग दुखी दिखाई देते है। बाबूजी सोचते हैं कि मुनीम और घसीटा जो एक सेठ के नीचे काम करते हैं और जो अपने काले धंधे और खराब रुई का ठेका बाबूजी से लेने आए है। लेकिन शीतलप्रसाद मतलब बाबूजी ने मना कर दिया। क्योंकि उनको कहीं न कहीं ये फायदे उठाने वाले ही लग रहे थे। बाबूजी मना करने के बावजूद आखरी में हमें पता चलता है कि बाबूजी पैसों की जरूरत की वजह से उनसे घूस ले लेते है और उस सदमे को ना सहन पाने की वजह से गाड़ी के आगे आ जाते है।इससे निखिल भी बहुत टूट जाता है, सीमा उसे दिलासा देने की कोशिश करती है। शोभना की शादी टूट जाती है। जब परिवार के पास कोई पैसे नहीं होते है तो पंडित, जो बाबूजी का दोस्त है, परमा जो पड़ोसी है, वो आगे आता है उनकी सहायता करने को। निखिल को अपनी गलती का अहसास हो जाता है और वो सच बता देता है कि रुपए उसने चोरी किया था। क्योंकि एक भाई ये देख नहीं सकता कि उसकी बहन की दहेज देकर शादी हो। तो इस नाटक में सभी के अपने अपने पक्ष है। सब अपनी जगह पर ठीक है। सबको सबकी फिक्र है। और सभी सबको गलत ठहरा रहे हैं। इसमें विचारों का मतभेद, इसमें कल, आज और आगे की जीवन की लड़ाई है। जो कर्मों से ही सही होता है।