नई दिल्ली – 26वें स्वामी हरिदास-तानसेन संगीत नृत्य महोत्सव ने भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की समृद्ध परंपरा को भव्य तरीके से मनाते हुए अपनी समाप्ति की। यह महोत्सव तीन दिवसीय कार्यक्रम के रूप में आधुनिक विद्यालय, बाराखंभा रोड में आयोजित किया गया। इस आयोजन में देश के प्रमुख कलाकारों ने अपनी कला से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 82 वर्षीय पद्मभूषण डॉ. उमा शर्मा द्वारा क्यूरेट किया गया यह महोत्सव महफ़िल अंदाज़ के प्रारूप को पुन: जीवंत करते हुए गुरु-शिष्य परंपरा की आत्मीयता को उजागर करता है। तीन दिनों में 2000 से अधिक लोगों ने इस कार्यक्रम का आनंद लिया।
पहला दिन : शास्त्रीय संगीत का जादू
महोत्सव की शुरुआत दु्रपद के प्रख्यात गायक उस्ताद फ. वसीफुद्दीन डागर के प्रभावशाली प्रस्तुति से हुई। उन्होंने राग कंबोजी और राग अदाना में अपनी प्रस्तुति दी। शिव तांडव पर आधारित अदाना ने श्रोताओं को एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाते हुए महोत्सव की शुरुआत को यादगार बना दिया। इसके बाद सितार वादक उस्ताद शुजात खान ने अपनी रचना से दर्शकों को सम्मोहित कर दिया। इस शाम का समापन बांसुरी के जादूगर पं. हरिप्रसाद चौरसिया के मंत्रमुग्ध कर देने वाले बांसुरी वादन से हुआ, जिसने दर्शकों के दिलों को छू लिया।
दूसरा दिन : वाद्य संगीत और गायन का संगम
दूसरे दिन का मुख्य आकर्षण पं. विश्वमोहन भट्ट और उनके पुत्र पं. सलील भट्ट की मोहिन वीणा और सात्विक वीणा पर प्रस्तुति थी। राजस्थान के मांगणियार कलाकारों के साथ उनकी प्रस्तुति झिर मिर बरसे मेह जैसी लोक धुनों से सराबोर थी। इसके बाद पं. शुभेंद्र राव और उनकी पत्नी सस्किया राव ने सितार और वायलनसैलो पर जुगलबंदी प्रस्तुत की। इस दिन का समापन सुप्रसिद्ध गायिका शुभा मुद्गल की भावपूर्ण गायन से हुआ। उनकी खयाल और ठुमरी रचनाओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तीसरा दिन : कथक और शास्त्रीय संगीत की शाम
तीसरी शाम कथक नृत्य और शास्त्रीय संगीत के संगम से सजी थी। 82 वर्षीय पद्मभूषण डॉ. उमा शर्मा ने अपने स्वास्थ्य चुनौतियों के बावजूद ‘मइया मोरी मैं नहीं माखन खायोÓ पर कथक भाव प्रस्तुत किया। उनके शिष्यों ने महाभारत के दसवें अध्याय पर आधारित महारास लीला का प्रदर्शन किया, जिसमें वृंदावन के वन में कृष्ण की बांसुरी और गोपियों के नृत्य को दर्शाया गया। इसके बाद सरोद वादक पं. तेजेंद्र नारायण मजूमदार ने अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इस सांस्कृतिक उत्सव का समापन बेगम परवीन सुल्ताना के यादगार गायन से हुआ। उनकी गायकी ने दर्शकों को खड़े होकर तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। डॉ. उमा शर्मा ने इस आयोजन को एक संदेश के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा, यह महोत्सव केवल संगीत और नृत्य का उत्सव नहीं है, बल्कि हमारी शास्त्रीय कला की समृद्ध धरोहर को संरक्षित और प्रोत्साहित करने का एक प्रयास है।