नई दिल्ली – आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद, जो कभी भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बने हुए थे, अब तेजी से कमजोर हो रहे हैं। पिछले दस वर्षों में, केंद्र सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कठोर और प्रभावी रणनीति अपनाई है, न केवल हिंसा को रोकने के लिए बल्कि इसके मूल कारणों को जड़ से समाप्त करने के लिए भी। इस परिवर्तन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, सशक्त विधायी ढांचे और शून्य सहनशीलता की नीति पर रखी गई है।
सख्त कानून और कठोर प्रवर्तन
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संसद में सरकार की आतंकवाद विरोधी उपलब्धियों को उजागर किया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की 95% सजा दर इस सफलता की कहानी बयान करती है, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे प्रभावी आतंकवाद विरोधी एजेंसियों में से एक बनाती है। मोदी सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए कानूनों में महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं, जिससे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी समूहों को निष्प्रभावी करने में सफलता मिली है।2019 में किए गए संशोधनों ने एनआईए को भारत की सीमाओं से परे भी आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच करने का अधिकार दिया। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में संशोधन के साथ, सरकार को न केवल संगठनों बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित करने और उनकी संपत्तियों को जब्त करने की शक्ति प्राप्त हुई। ये कानूनी बदलाव सुनिश्चित करते हैं कि आतंकी नेटवर्क बनने से पहले ही उन्हें ध्वस्त किया जा सके।
सख्त कार्रवाइयों के ठोस परिणाम मोदी सरकार ने 2019 से अब तक 57 व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित किया और 23 संगठनों पर प्रतिबंध लगाया, जिनमें हुर्रियत से जुड़े 14 समूह शामिल हैं। कभी कश्मीर में प्रभावशाली रहे हुर्रियत को निष्क्रिय कर दिया गया है, जिससे उसकी मध्यस्थता की भूमिका समाप्त हो गई है। PFI के खिलाफ देशभर में बड़े स्तर पर कार्रवाई करते हुए 24 राज्यों में छापेमारी की गई, जिससे इसके प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी संभव हुई।
आधुनिक सुरक्षा संरचना का निर्माण
आतंकवाद विरोधी अभियानों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए NIA का विस्तार किया गया है। 1,244 नए पदों का सृजन, 16 शाखा कार्यालयों की स्थापना और गुवाहाटी व जम्मू में नए क्षेत्रीय केंद्र खोलने जैसे कदम सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता को मजबूत करने में सहायक रहे हैं। इसके अतिरिक्त, मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) को भी विस्तारित किया गया है, जो अब साइबर सुरक्षा, नार्को-टेररिज्म, हथियारों की तस्करी और संगठित अपराधों पर नजर रखता है। नेशनल मेमोरी बैंक और NATGRID के तहत 35 डेटा स्रोतों के एकीकरण ने सुरक्षा तंत्र को और अधिक प्रभावी बनाया है। MAC के अंतर्गत तैयार 72,000 से अधिक रिपोर्टें इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की खुफिया एजेंसियां उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिए पहले से कहीं अधिक सक्षम हैं।
तकनीकी नवाचार और सुरक्षा उपाय
तकनीकी विकास को अपनाते हुए, NIA ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से रासायनिक, जैविक और परमाणु आतंकवाद से निपटने की रणनीति विकसित की है। केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) के साथ साझेदारी करके फोरेंसिक क्षमताओं को भी उन्नत किया गया है, जिससे जांच प्रक्रिया में वैज्ञानिक साक्ष्यों का महत्व बढ़ा है।
नतीजे: आतंकवाद पर नियंत्रण
अतीत में भारत कई बड़े आतंकी हमलों का शिकार रहा है, लेकिन अब ऐसी घटनाएं दुर्लभ हो गई हैं। पहले जहां आतंकवादी समूहों के सदस्य वर्षों तक खुलेआम घूमते थे, अब उनकी गतिविधियां कुछ ही दिनों में समाप्त कर दी जाती हैं।हालांकि, इस कठोर नीति की आलोचना भी हुई है। जब एनआईए अधिनियम में संशोधन किया गया, तो विपक्षी दलों ने इसके दुरुपयोग की आशंका जताई। लेकिन पांच वर्षों बाद, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसलों को सही ठहराते हुए यह सुनिश्चित किया कि इन कानूनों का प्रभावी और न्यायसंगत उपयोग किया गया है।
निष्कर्ष: राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि
गृह मंत्री अमित शाह लगातार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि भारत की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों को आतंकवाद के स्रोत पर हमला करने की पूरी स्वतंत्रता दी गई है।भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति अब प्रतिक्रियात्मक नहीं बल्कि सक्रिय हो गई है, जिससे संभावित खतरों को समय रहते समाप्त किया जा सके। चाहे कश्मीर हो, पंजाब हो या देश का कोई अन्य क्षेत्र, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि आतंकवाद भारत की राष्ट्रीय कथा को अब निर्धारित नहीं कर सकता।लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन एक बात स्पष्ट है: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब आतंकवाद के खिलाफ पहले से कहीं अधिक सशक्त और तैयार है। गौतम मुखर्जी: लेखक एक राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं। वे विभिन्न राष्ट्रीय दैनिकों में नियमित रूप से लिखते हैं और समाचार चैनलों पर पैनलिस्ट के रूप में भाग लेते हैं।