नई दिल्ली- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की कार्यवाहक अध्यक्ष सैयद शहजादी ने गुजरात सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किए जाने के फैसले की पृष्ठभूमि में शुक्रवार को कहा कि भगवद गीता कोई धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक दर्शन है जिसका विदेशों में भी अध्ययन हो रहा है। गुजरात सरकार ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि भगवद गीता को अकादमिक वर्ष 2022-23 से पूरे राज्य में छठी से 12वीं कक्षाओं तक के स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा। राज्य के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने कहा था कि भगवद गीता में मौजूद नैतिक मूल्यों एवं सिद्धांतों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय केंद्र की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तर्ज पर लिया गया है। शहजादी ने गुजरात सरकार के इस फैसले के बारे में पूछे जाने पर संवाददाताओं से कहा कि मेरी यह निजी राय है कि भगवद गीता एक धार्मिक पुस्तक नहीं है। यह एक दर्शन है। इसे जो चाहें, वह पढ़ सकते हैं। इसे दर्शन के तौर पर देखा जा सकता है। विदेशों में भी इसका अध्ययन हो रहा है। इस सवाल पर कि क्या वह पवित्र कुरान और दूसरे धर्म ग्रंथों की भी पढ़ाई कराए जाने के पक्ष में हैं, उन्होंने कहा कि हमने किसी को मना नहीं किया है। हम चाहते हैं कि हर धर्म के बारे में लोग पढ़ें। कर्नाटक में हिजाब विवाद पर अल्पसंख्यक आयोग की कार्यवाहक प्रमुख ने कहा कि सबकी अपनी अपनी भावनाएं होती हैं। लेकिन भावनाओं से देश नहीं चलता। देश संविधान से चलता है। अदालत ने इस पर एक फैसला दिया है। इसे हम सबको मानना होगा।