महात्मा गांधी का उपरोक्त दृष्टिकोण समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा के वास्तविक सार को दर्शाता है। यह ‘करके सीखने’ की अवधारणा के बारे में भी बताता है जो हाल के दिनों में बहुत लोकप्रियता हासिल कर रहा है। उपर्युक्त विशेषताएं पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में सरकार नवीनतम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के माध्यम से ध्यान केंद्रित करना चाहती है। नई नीति न केवल शिक्षा को राष्ट्रीय विकास के पथ पर भारत का नेतृत्व करने के लिए मौलिक मानती है, बल्कि समाज के कुछ वंचित वर्गों के संबंध में हमारी शिक्षा प्रणाली की विफलताओं को भी पहचानती है। एनईपी लोगों के इस कम प्रतिनिधित्व वाले वर्ग को सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूह (एसईडीजी) के रूप में वर्णित करता है, (एसईडीजी), लिंग पहचान (महिलाओं और ट्रांसजेंडरों), सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान (एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक), भौगोलिक पहचान (ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और आकांक्षी जिलों के छात्र), दिव्यांग (सीखने की अक्षमता सहित), और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों (प्रवासी समुदायों, कम आय वाले परिवारों, मानव तस्करी के पीड़ितों, अनाथों, शहरी गरीबों आदि) से ऊपर उठकर शिक्षार्थियों का एक व्यापक समूह है।सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही अंतिम लक्ष्य है परन्तु प्रौद्योगिकी इन अंतिम स्थान पर खड़े व्यक्तियों को कल के नागरिकों में बदलने तथा सशक्त बनाने के लिए सहायक के रूप में कार्य कर सकती है।एनईपी शैक्षिक प्रक्रियाओं और परिणामों में सुधार करने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी भूमिका को पहचानती है। एनईपी यह भी पहचानती है कि किस प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और वर्चुअल रियलिटी (वीआर) जैसी उभरती विघटनकारी प्रौद्योगिकियों का प्रभाव शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने के तरीके में बदलाव लाएगा । कोविड महामारी के दौरान एडटेक उत्पाद रक्षक के रूप में उभरे, जिससे छात्रों को स्कूलों में भौतिक संपर्क की कमी से निपटने में मदद मिली। हमारे देश में, साक्षरता दर में क्षेत्रीय आधार पर बहुत असमानता है, जैसे केरल जैसे राज्य सार्वभौमिक साक्षरता (94%) के करीब पहुंच रहे हैं और बिहार जैसे अन्य राज्य बहुत पीछे (62%) हैं। सामाजिक समूहों में भी असमानता है – एससी और एसटी जैसे वंचित समुदायों में साक्षरता की दर कम है। इन समूहों के भीतर महिला साक्षरता की दर और भी कम है। एनएसएस के 75वें दौर की रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न सामाजिक समूहों में, गैर-एससी/एसटी/ओबीसी जनसंख्या समूहों से संबंधित लोगों में साक्षरता दर सबसे अधिक थी, पुरुषों के लिए 91% और महिलाओं के लिए 81% थी। ओबीसी पुरुषों के लिए यह अनुपात घटकर 84% और ओबीसी महिलाओं के लिए 69% हो गया। एससी के लिए, यह अनुपात पुरुषों के लिए 80% और महिलाओं के लिए 64% से भी कम था, और एसटी के लिए यह पुरुषों के लिए 78% और महिलाओं के लिए 61% पर सबसे कम था। 2011 की जनगणना के अनुसार दिव्यांगजनों की संख्या 26.8 मिलियन यानी देश की आबादी का 2.21% थी। दिलचस्प बात यह है कि दिव्यांगजनों की आबादी भी क्षेत्रीय रूप से विषम थी ग्रामीण क्षेत्रों में 18 मिलियन से अधिक थे, जबकि शहरी क्षेत्रों में केवल 8 मिलियन की संख्या थी। वर्तमान में देश भर में संचालित न्यूरो डाइवर्स बच्चों के लिए परियोजनाओं का उद्देश्य मुख्यधारा की शिक्षा, विशेष शिक्षा और प्रौद्योगिकी के बीच के अंतर को कम करके हमारे इन समुदायों का सहयोग करना है ताकि सबको सीखने के समान अवसर प्रदान किए जा सकें।