उत्तराखंड में बादल फटने की घटना ने भारी तबाही मचाई है। 50 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। इसके साथ ही सेना के एक जेसीओ सहित 8 जवान भी लापता हैं। हालांकि बताया यह भी जा रहा है कि इस तबाही में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। इससे पहले जून 2025 में भी बादल फटने की घटना हुई थी। उसकी वजह से उत्तर काशी में ही कई लोगों की जान चली गई थी। इस कार्य में सबसे पहले सरकारी विभाग खास तौर पर डिजास्टर मैनेजमेंट के लोग आम जनों की सहायता के लिए पहुंचते हैं और इसे ही ‘आपदा में अवसर’ की संज्ञा दी गई है। तटीय, पर्वतीय और मैदानी इलाकों में प्राकृतिक आपदाओं और मनुष्य निर्मित आपदाओं के मामलों में आपदा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञ ही काम आते हैं। यही कारण है कि जज्बा, जुनून और अपने काम के प्रति समर्पण की भावना रखने वाले युवाओं के लिए इस क्षेत्र में शानदार कॅरियर बनाने सुनहरा मौका है। इस क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की मांग लगातार बनी हुई है। जी हां इस तरह की आपदाओं में लोगों के लिए कॅरियर बनाने के अवसर तेजी से बढ़े हैं। इस तरह की घटनाओं ने हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट के क्षेत्र में रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ाये हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में प्रशिक्षत और अनुभवी युवाओं की मांग और तेजी से बढ़ेगी। अतः जो लोग इस क्षेत्र में करियर की बुलंदी तक पहुंचना चाहते हैं वे डिप्लोमा से लेकर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएशन के कोर्सों की जरिये आगे बढ़ सकते हैं। ट्रेड डिप्लोमा इन हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट का कोर्स करने के लिए अभ्यर्थी का 12वीं या इसके समकक्ष पास होना अनिवार्य है। यह कोर्स 18 महीने का होता है। इसके साथ ही फायर टेक्नॉलॉजी एंड इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट का सर्टिफिकेट कोर्स भी किया जा सकता है। हालांकि फायरमैन, सब आफिसर, असिस्टेंट डिवीजनल आफिसर, डिवीजनल ऑफिसर जेसे पदों के लिए अलग अलग कोर्स किये जा सकते हैं। हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट से जुड़े लोगों को आम तौर पर सामान्य सेवाओं से जुड़ा हुआ मान लिया जाता है। लेकिन खास बात है कि यह कोर्स करने के बाद औद्योगिक क्षेत्र में ऐसे प्रशिक्षित युवाओं की मांग ज्यादा है। औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न इकाईयों में आपदा की घटनाओं से बचाव के उपाय करने की जिम्मेदारी यह प्रशिक्षित लोग ज्यादा सफलता पूर्वक उठा सकते हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में इनकी मांग तेजी से बढ़ी है। यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि सरकारी और निजी क्षेत्र में अब ‘मल्टी टास्क सर्विस’ का चलन तेजी से बढ़ा है। इसका मतलब यह है कि एक ही व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा यानी कई लोगों की जिम्मेदारी उठा सकता हो। यानी जो युवा डिजास्टर मैनेजमेंट के साथ फायर फाइटिंग और हेल्थ सेफ्टी मैनेजमेंट का भी प्रशिक्षण लिये होते हैं, उन्हें नौकरी में प्राथमिकता दी जाती है। किसी भी बड़ी कंपनी और औद्योगिक संस्थान में ऐसे कर्मचारियों के पद नाम अलग हो सकते हैं, लेकिन काम एक ही होता है। कार्य का स्वरूपः हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट इंजीनियर का मुख्य काम आपदा या दुर्घटना के कारणों का पता लगाना और उसकी रोकथाम का होता है। फायर फाइटिंग सिविल, इलेक्ट्रीकल, एंवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग भी इसी से जुड़ा क्षेत्र है। प्राकृतिक एवं मनुष्य द्वारा उत्पन्न आपदाओं के उपायों से संबंधित यंत्रों की तकनीकी जानकारी, स्प्रिंक्लर सिस्टम, अलार्म, केमिकल या सैनेटाइजर की बौछार का सबसे स्टीक इस्तेमाल, कम से कम समय और कम से कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा जान और काम की रक्षा करना उसका उद्देश्यं होता है। शैक्षणिक योग्यता,इस फील्ड के लिए जितनी जरुरत डिग्री की है, उससे ज्यादा जरुरत कुछ व्यक्तिगत योग्यताओं की भी है। हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट विशेषज्ञ के अंदर साहस और धैर्य के साथ लीडरशिप क्वालिटी, क्विक डिसीजन लेने की क्षमता का होना जरूरी है। ताकि किसी भी बड़ी दुर्घटना को कंट्रोल कर सके। फिर भी डिप्लोमा या डिग्री में दाखिले के लिए 12वीं पास होना अनिवार्य है। इसमें प्रवेश के लिए ऑल इंडिया एंट्रेंस एक्जाम होता है। केमिस्ट्री के साथ फिजिक्स या गणित विषय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होना भी जरूरी है। शारीरिक योग्यताःशैक्षणिक योग्यता के साथ इस फील्ड में करियर बनाने के लिए शारीरिक योग्यता भी देखी जाती है। पुरुषों के लिए न्यूनतम लंबाई 165 सेंटीमीटर, वनज 50 किलोग्राम वहीं महिलाएं कम से 157 सेंटीमीटर लंबी हों, वजन कम से कम 46 किग्रा होना जरूरी है। आई विजन दोनों के लिए 6/6 होनी चाहिए। और उम्र 19 साल से 23 साल के अंदर हो। यहां मिलेंगे अवसरःदिल्ली इंसटीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग के निदेशक अनिल कुमार के मुताबिक इसमें रोजगार की अपार संभावनाएं है। पहले सिर्फ महानगरों में फायर स्टेशन होते थे आज हर जिले में फायर स्टेशन हैं। इसके अलावा आज हर सरकारी और गैरसरकारी दफ्तरों में एक फायर इंजीनियर की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गई है। फायर इंजीनियर की जरूरत अग्निशमन विभाग के अलावा आर्किटेक्चर और बिल्डिंग निर्माण, इंष्योरेंस एसेसमेंट, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, रिफाइनरी, गैस फैक्ट्री, निर्माण उद्योग, प्लास्टिक, एलपीजी तथा केमिकल्स प्लांट, बहुमंजिली इमारतों व एयरपोर्ट हर जगह इनकी खासी डिमांड है। कौन कौन से कोर्सः अनिल कुमार का कहना है कि डिप्लोमा इन हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वायरनमेंट, डिप्लोमा इन फायर फाइटिंग, पीजी डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी इंजीनियरिंग, बीएससी इन फायर इंजीनियरिंग, फायर टेक्नालॉजी एंड इंडस्ट्रीयल सेफ्टी मैनेजमेंट, इंडस्ट्रीयल सेफ्टी सुपरवाइजर, रेस्कयू एंड फायर फाइटिंग, जैसे कोर्स शामिल हैं। जिसकी अवधि 6 महीने से लेकर तीन साल है। कोर्स के दौरान हेल्थ, सेफ्टी एवं पर्यावरण प्रबंधन के साथ विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचने सहित किसी भी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा से बचाव की तकनीकी जानकारी से लेकर जान-माल के बचाव के साइंटिफिक फॉर्मूले की जानकारी दी जाती है, जैसे आग पर काबू पाने, खतरों से खेलने, उपकरणों का प्रयोग कैसे किया जाए आदि के गुण सिखाये जाते हैं।
प्रमुख संस्थान
दिल्ली इंसटीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग
www.dife.in
इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली
www.ignou.ac.in
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फायर, डिजास्टर एंड एन्वायरमेंट मैनेजेंट, नागपुर
www.nifdem.com