नई दिल्ली – थैलेसीमिया को मात देने वाले बीकानेर के 12 वर्षीय प्रथम और अपना स्टेम सेल देकर उसे एक नई ज़िंदगी देने वाले कानपुर के 35 वर्षीय रोहित की पहली मुलाकात सचमुच दिल को छू लेने वाली थी। एक फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर काम करने वाले रोहित, बॉलीवुड की फिल्म “द स्काई इज़ पिंक” से बेहद प्रभावित हुए। एक जानलेवा बीमारी से पीड़ित बच्चे के परिवार के संघर्षों को दिखाने वाली इस फिल्म से प्रेरित होकर उन्होंने DKMS फाउंडेशन इंडिया में डोनर के तौर पर अपना रजिस्ट्रेशन कराया, जो ब्लड कैंसर और खून से संबंधित अन्य बीमारियों के खिलाफ समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन है। थैलेसीमिया खून से संबंधित एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसकी वजह से शरीर में सामान्य से कम मात्रा में हीमोग्लोबिन बनता है। इससे एनीमिया, थकान और सेहत से जुड़ी अन्य गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों का संभावित तौर पर इलाज किया जा सकता है, जिसमें उनके शरीर में खराब हो चुकी खून बनाने वाली कोशिकाओं को किसी डोनर की स्वस्थ कोशिकाओं से बदल दिया जाता है। मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली की हेमेटोलॉजी, हेमेटो-ऑन्कोलॉजी, बीएमटी की डायरेक्टर, डॉ. ईशा कौल ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा,थैलेसीमिया आज भी भारत में बच्चों और उनके परिवारों के लिए शारीरिक और जज़्बाती तौर पर बहुत अधिक परेशानी का कारण बना हुआ है, जहाँ पूरी दुनिया में इसके मामलों की संख्या सबसे ज़्यादा हैं। ब्लड ट्रांसफ्यूजन इसका एक अस्थायी समाधान है, लेकिन स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जिससे इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। कई मरीजों के सहोदर भाई-बहन भी उनके मैचिंग डोनर नहीं होते हैं, लिहाजा ऐसे मामलों में मेल खाने वाले असंबंधित डोनर (MUD) की मदद से ट्रांसप्लांट ही उनकी ज़िंदगी का एकमात्र सहारा होता है। हालाँकि, लाखों में से एक मैचिंग डोनर ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती है।प्रथम की उम्र जब सिर्फ़ 6 महीने थी तभी इस बीमारी का पता चल गया था, और उसने अपने बचपन का ज्यादातर समय बार-बार होने वाले और बेहद तकलीफदेह ब्लड ट्रांसफ्यूजन में बिताया। करीब सात सालों तक, उनके परिवार ने एक मैचिंग स्टेम सेल डोनर की तलाश लगातार जारी रखी, और इस दौरान कभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। उनका इलाज करने वाले विशेषज्ञ, डॉ. विक्रम मैथ्यूज, डायरेक्टर, सीएमसी; हेमाटोलॉजी के प्रोफेसर, हेमाटोलॉजी विभाग, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर, ने कहा,प्रथम जब पहली बार हमारे पास आया था, तो वह बहुत छोटा और काफी नटखट था। हमने उन्हें अपना पूरा सहयोग दिया और उसका इलाज किया, लेकिन स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही उसके ठीक होने का एकमात्र विकल्प था। खुशकिस्मती से, उसे एक असंबंधित मैचिंग डोनर मिल गया, जिसके बाद हम स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया पूरी कर पाए। उसकी कहानी हमें पुरजोर तरीके से यह याद दिलाती है कि, शुरुआत में पता लगने और सही चिकित्सकीय मदद से थैलेसीमिया को असरदार तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। जब उसकी माँ के जन्मदिन के मौके पर परिवार को एक फोन आया, जिसमें उन्हें बताया गया कि DKMS फाउंडेशन इंडिया के माध्यम से मैचिंग डोनर मिल गया है, तब उनकी उम्मीद हकीकत में बदल गई। 35 साल के रोहित ही वह मैचिंग डोनर थे, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान एक फिल्म से प्रेरित होकर डोनर के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था, क्योंकि इस फिल्म के क्रेडिट में DKMS के बारे में जानकारी दी गई थी। उन्होंने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया और होम स्वैब किट का ऑर्डर दिया, जिसके आठ महीने बाद प्रथम के जीवनदाता के रूप में उनकी पहचान की गई। प्रथम और रोहित की मुलाकात का लम्हा खुशियों भरा होने के साथ-साथ बेहद भावुक भी था, जिसमें धन्यवाद के आँसू और दिल से निकली दुआएं शामिल थीं। प्रथम और उनके परिवार ने नई ज़िंदगी देने के लिए तहे दिल से रोहित का शुक्रिया अदा किया। दिल्ली में प्रथम से अपनी पहली मुलाकात के बारे में रोहित ने कहा, प्रथम को अपने सामने मुस्कुराते हुए देखने का अनुभव बहुत ही सुखद था। मुझे इस छोटे, लेकिन सार्थक तरीके से मदद करने पर गर्व महसूस हो रहा है। रोहित की मेहरबानी से, अब मुझे ब्लड ट्रांसफ्यूजन या दर्द भरी सुई लगवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मैं बहुत खुश हूँ और ऊर्जावान महसूस करता हूँ, प्रथम ने कहा, जो अब रोज़ स्कूल जाता है, पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों में हिस्सा लेता है, और क्रिकेट के अपने शौक को पूरा करता है। रोहित के गालों के अंदरूनी हिस्से के स्वैब से स्टेम सेल डोनेशन की शुरुआत हुई थी, जिसकी वजह से प्रथम का थैलेसीमिया ठीक हो गया, और उनके भावुक मिलन ने उम्मीद और निःस्वार्थ सेवा के इस ज़िंदगी बदलने वाले तोहफे का उत्सव मनाया। भारत में हर साल 10,000 से ज़्यादा बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। ब्लड ट्रांसफ्यूजन इनमें से ज़्यादातर बच्चों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है, लेकिन ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही उन्हें पूरी तरह ठीक करने का एकमात्र विकल्प है। हालाँकि, खासकर भारतीय मूल के मेल खाने वाले डोनर की उपलब्धता बहुत कम है। प्रथम का ये सफ़र थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की किरण की तरह है, जो DKMS-थैलेसीमिया कार्यक्रम के असर को दुनिया के सामने लाती है। DKMS इंडिया के अध्यक्ष, पैट्रिक पॉल ने कहा,DKMS फाउंडेशन इंडिया का ‘एक्सेस टू ट्रांसप्लांटेशन’ (ATT) कार्यक्रम उस अंतर को दूर करने का काम कर रहा है, जो अक्सर मरीजों और उन्हें ठीक करने के बीच खर्च वहन करने की क्षमता और सहज उपलब्धता के रूप में सामने आती है। थैलेसीमिया के मरीजों के लिए मुफ़्त HLA टाइपिंग की पेशकश करने से लेकर हमारे मरीज़ सहायता कार्यक्रम के ज़रिए आर्थिक मदद मुहैया कराने तक, हम उन मुख्य रुकावटों को दूर कर रहे हैं जिनका सामना परिवारों को ट्रांसप्लांटेशन के अपने सफ़र में करना पड़ता है।”
संभावित स्टेम सेल डोनर के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराने की इच्छा रखने वाले भारतीयों की उम्र 18 से 55 साल के बीच होनी चाहिए, तथा उनकी सेहत अच्छी होनी चाहिए। रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आपको बस एक सहमति फॉर्म भरना होगा। इसके बाद आपके गालों के अंदरूनी हिस्से के टिश्यू सेल्स को एकत्रित करने के लिए स्वैब लिया जाता है, जिसे HLA (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) के विश्लेषण के लिए लेबोरेटरी में भेजा जाता है। इसके बाद संभावित डोनर का नाम उजागर किए बिना, स्टेम सेल डोनर से मिलान के लिए इंटरनेशनल सर्च प्लेटफ़ॉर्म पर सूचीबद्ध किया जाता है।