नई दिल्ली- स्ट्रीट फूड में परिपूर्ण तरीके से तला हुआ स्नैक उस तेल पर निर्भर करता है जिसमें वह तैयार किया जाता है और इस पहलू को हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इसी विषय पर एक पॉडकास्ट सीरीज़ में कुलिनरी एक्सप्लोरर और दिल्ली फूड वॉक्स के संस्थापक अनुभव सप्रा को दिखाया गया है, जहाँ उन्होंने स्ट्रीट फूड में उपयोग होने वाले तेलों की भूमिका को सरल तरीके से समझाया और भ्रामक फूड लेबल्स के पीछे छिपे सच को उजागर किया। पहले एपिसोड साइलेंट हीरो द साइंस ऑफ़ व्हाट वी ईट में अनुभव बताते हैं कि स्ट्रीट वेंडर्स पाम तेल का व्यापक उपयोग क्यों करते हैं। उच्च तापमान पर इसकी स्थिरता, न्यूट्रल स्वाद और लगातार एकसमान तलने की क्षमता भारतीय स्नैक्स को उनका विशिष्ट कुरकुरापन देती है। दूसरे एपिसोड नो पाम ऑयल? डोंट बी फूल्ड में वे “नो पाम ऑयल” लेबल्स की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हैं और बताते हैं कि ये टैग अक्सर उपभोक्ताओं में भ्रामक स्वास्थ्य धारणाएँ पैदा करते हैं। पाम तेल स्वाभाविक रूप से कोलेस्ट्रॉल-फ्री होता है, क्योंकि कोलेस्ट्रॉल केवल पशु-आधारित वसा में पाया जाता है। संतुलित आहार का हिस्सा बनने पर पाम तेल का रक्त कोलेस्ट्रॉल स्तर पर न्यूट्रल प्रभाव पड़ता है। इसमें टोकोट्रियनोल नामक विटामिन-ई यौगिक भी मौजूद होते हैं, जो अपने शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट गुणों और सेल स्तर तथा हृदय स्वास्थ्य को समर्थन देने में संभावित भूमिका के लिए पहचाने जाते हैं। अनुभव ने भारत के खाद्य तेल इकोसिस्टम को मजबूत करने के व्यापक प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। भारत का नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स ऑयल पाम 2025–26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर और 2029–30 तक कुल 16.71 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ऑयल पाम विस्तार का लक्ष्य रखता है। इस मिशन का विशेष फोकस उत्तर-पूर्वी राज्यों पर है, जिससे देश की तेल आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। आईएफबीए और ओटीएआई जैसे उद्योग संगठनों ने चेताया है कि “नो पाम ऑयल” जैसे लेबल प्रायः मार्केटिंग रणनीतियाँ होती हैं, न कि पोषण संबंधी श्रेष्ठता का संकेत। उपभोक्ताओं को सलाह दी जाती है कि वे पैक के सामने दिए गए दावों के बजाय संपूर्ण पोषण सामग्री विशेष रूप से चीनी, नमक और कुल फैट का मूल्यांकन करें।
