भारत में हमें यदि समावेशी विकास करना है तो गांवों की महिलाओं को सभी तरह की वित्तीय गतिविधियों में शामिल करना बहुत जरूरी है। लेकिन, अधिकांश ग्रामीण महिलायें सरकारी लाभों की निकासी के अलावा दूसरी औपचारिक वित्तीय सेवाओं में ज्यादा रुचि नहीं लेती हैं। इस सम्बन्ध में, बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट (बीसी) यानी बैंकिंग अभिकर्ता बैंकों और सेवा से वंचित समुदायों के बीच बिचौलिए की भूमिका निभाते हुए वित्तीय सेवाओं को ज्यादा ग्रामीण महिलाओं तक पहुँचा सकते हैं। इस आलेख में यह विश्लेषण किया गया है कि ग्रामीण महिलाओं के वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने में बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट किस प्रकार सहायक हो सकते हैं। ग्रामीण महिलाओं के वित्तीय समावेशन की आवश्यकताप्रधान मंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत व्यापक प्रयासों के चलते 513 मिलियन (51 करोड़ 30 लाख) भारतीयों को बुनियादी बैंक खाते का स्वामित्व मिला है, जिनमें 55% महिलायें हैं। लेकिन अधिकतर ग्रामीण महिलायें पीएमजेडीवाई खाते का प्रयोग कभी-कभार केवल सरकार से मिले पैसों की निकासी के लिए ही करती हैं। जागरूकता की कमी के कारण वे बचत, ऋण, बीमा या पेंशन के लिए अपने खाते का परिचालन नहीं करतीं।बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट का उद्भव बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट्स (बीसी) ने पिछले दशकों में औपचारिक वित्तीय संस्थानों और बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण समुदायों के बीच अंतर काफी कम कर दिया है। बीसी माइक्रो-एटीएम, बायोमेट्रिक उपकरणों, और मोबाइल फोन के माध्यम से बुनियादी बैंकिंग लेन-देन को सरल बनाते हैं। ई-केवाईसी, रुपे कार्ड और आधार-समर्थित इंटरफ़ेस से लैस बीसी बैंक खाते खोले, राशि जमा करने, निकासी, विप्रेषण और भुगतानों में सहायता करते हैं और इस प्रकार वित्तीय साक्षरता बढ़ाते हैं।ग्रामीण महिलाओं के वित्तीय समावेशन सामर्थ्य के प्रति बीसी के लिए योजनायें भारत में ग्रामीण महिलाओं के बीच वित्तीय समावेशन को बेहतर बनाने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सबसे पहला कदम है महिला बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट (बीसी) नेटवर्क का विस्तार करना। महिला बीसी की संख्या बढ़ाने से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं के लिए प्राथमिकता-आधारित पहुँच बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि महिला बीसी के साथ बातचीत करने में उन्हें अधिक सुविधा महसूस हो सकती है। सरकार ने इसी योजना के अनुरूप कॉरेस्पॉन्डेंट में महिला बीसी का अनुपात बढ़ा कर एक-तिहाई करने का लक्ष्य रखा है।बीसी विशेष रूप से अभिकल्पित वित्तीय उत्पादों की समझ बढ़ाने में भी सहायक हो सकते हैं, जिनसे ग्रामीण महिलाओं की सूक्ष्म-बचत, ऋण, और सूक्ष्म-बीमा जैसी ज़रूरतों का समाधान होता है। लेकिन, ग्रामीण महिलाओं में डिजिटल जागरूकता की कमी के कारण इन उत्पादों के प्रयोग में बाधा आती है। इसलिए, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। बायोमेट्रिक उपकरणों और मोबाइल वॉलेट से लैस बीसी डिजिटल लेन-देन करा सकते हैं, लेकिन डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए बीसी और महिलाओं की स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) की ज़रूरत है, ताकि इन उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके।अपने ग्राहक को जानें’ (केवाईसी) से सम्बंधित अपेक्षाओं के सरलीकरण से अधिक ग्रामीण महिलाओं को खाता खोलने में मदद मिलेगी और ई-केवाईसी पद्धतियों से कागजातों का सत्यापन आसानी से हो सकेगा। हालांकि, इन उपायों की सफलता बुनियादी संरचनाओं की उपलब्धता पर निर्भर करती है। बीसी के परिचालनों और महिलाओं की ऐक्सेस को मजबूत करने के लिए ग्रामीण बुनियादी संरचनाओं, जैसे कि बिजली, इन्टरनेट कनेक्टिविटी, और परिवहन के लिंक्स को बेहतर बनाना जरूरी है। अंत में, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) को शामिल करने से वित्तीय उत्पादों पर समकक्ष शिक्षण का निर्माण किया जा सकता है। आज 8 करोड़ से अधिक ग्रामीण महिलायें स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से माइक्रो फाइनेंस से जुड़ी हुई हैं। इसे देखते हुए इन समूहों के साथ साझेदारी करने से वित्तीय समावेशन की पहलकदमियों की पहुँच और प्रभाव काफी बेहतर हो सकता है। अंतर-सम्बद्ध और सुव्यवस्थित दृष्टिकोण से भारत में ग्रामीण महिलाओं के बीच वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में बीसी की भूमिका काफी बेहतर बन सकती है।