नई दिल्ली – 21वीं सदी में, सस्टेनेबिलिटी दुनिया की जरूरत है। यदि अब किसी भी कम्पनी को प्रगति करनी है तो सस्टेनेबिलिटी को अपनी प्राथमिकता सूची में रखना ही होगा।संस्थापक मानव सुबोध 1एम1बी ने कहा कि दुनिया के बहुत से देश सस्टेनेबिलिटी को केन्द्र में रखते हुए बदलाव कर रहे हैं, जिसे ग्रीन इकॉनॉमी में क्रांति कहा जा रहा है, भारत भी इस क्रांति का गवाह बन रहा है। अनुमान है कि भारत के रिन्यूएबल ऐनर्जी लक्ष्य की बदौलत वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में 34 लाख नई नौकरियां उत्पन्न होंगी।यह आंकड़ा केवल रिन्यूएबल ऐनर्जी क्षेत्र के बारे में है, लेकिन जरा सोचिए की सस्टेनेबिलिटी के जो विभिन्न पहलू हैं उनके चलते और भी कितने ही क्षेत्रों में न जाने कितनी सारी और नौकरियां पैदा होंगी – जैसे वेस्ट मैनेजमेंट, ग्रीन बिल्डिंग डिजाइन, क्लीन टेक्नोलॉजी, सस्टेनेबल खेतीबाड़ी, पर्यावरण परामर्श आदि। एक हालिया सर्वेक्षण में सामने आया है कि इस दशक में ’सस्टेनेबिलिटी मैनेजर’ का पद टॉप 10 उभरती नौकरियों में से एक होगा।हमें ऐसे कौन से कदम उठाने चाहिए कि हमारी आगे आने वाली वर्कफोर्स ग्रीन इकॉनॉमी में न सिर्फ काम करने लायक बने बल्कि एक कामयाब करियर भी बनाए।मैं इस सवाल का जवाब तीन हिस्सों में देना चाहूंगा।
1. मौजूदा वर्कफोर्स की अपस्किलिंग और रिस्किलिंग
मेरी राय में यह वो काम है जो हमें तत्काल शुरु कर देना चाहिए। अपनी मौजूदा वर्कफोर्स को हम किस तरह ग्रीन इकॉनॉमी की ओर ले जा सकते हैं? भविष्य में आने वाली क्लीन ऐनर्जी की नौकरियों में आला दर्जे के कौशल की जरूरत पड़ेगी।
कर्मचारियों के अपस्किल और रिस्किल के लिए हमें सिस्टम स्थापित करने एवं मैकेनिज़्म तैयार करने की जरूरत है। इसके लिए हमें वर्कफोर्स ट्रेनिंग और लोकल प्रोग्राम में निवेश करना होगा
2. विश्वविद्यालयों में सस्टेनेबिलिटी सिखाई-पढ़ाई जाए
अपनी अर्थव्यवस्था को ग्रीन इकॉनॉमी बनाने के लिए हमें विश्वविद्यालय के स्तर पर सस्टेनेबिलिटी को सिर्फ एक खास विषय के तौर पर नहीं बल्कि व्यापक स्तर पर पढ़ाए जाने की जरूरत है। हमें इंजीनियर चाहिए जो इलेक्ट्रिक वाहनों व अन्य ग्रीन टेक्नोलॉजी में इनोवेशन करें, हमें ऐसे वकील चाहिए जो सस्टेनेबिलिटी नीतियों के विशेषज्ञ हों और हमें ऐसे प्रोग्रामर चाहिए जो पर्यावरण का ख्याल करते हों आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मीडिया स्टडीज़ व अन्य कौशलों की तरह सस्टेनेबिलिटी भी सीबीएसई व अन्य स्कूलों में बतौर कौशल सिखाई जा सकती है
3. हाई स्कूल के विद्यार्थियों में सस्टेनेबिलिटी की सोच विकसित करना
हमारा बर्ताव सस्टेनेबल क्यों नहीं है? क्योंकि हमारी सोच वैसी नहीं है। सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में नौकरियां प्राप्त करने के लिए हमें अपने नौजवानों को काबिल बनाना है तो सबसे पहले यह करना होगा कि हर एक विद्यार्थी को सस्टेनेबिलिटी वाली सोच सिखाई जाए। यह बिल्कुल उसी तरह होग जैसे हम उनमें प्रॉब्लम सॉल्विंग सोच विकसित करते हैं, इस के लिए विद्यार्थियों को ऐसे मौके दिए जाने चाहिए कि वे अपनी कम्यूनिटी और आस-पड़ोस के साथ शामिल होकर छोटे स्तर के सस्टेनेबल प्रोजेक्ट पूरे करें।
चाहे यह रेन-वाटर हारवैस्टिंग के लिए हो या फिर लोगों को फास्ट फैशन के बारे में शिक्षित करना हो – ये प्रोजेक्ट विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे सस्टेनेबिलिटी को इनोवेशन के नजरिए से देखें।सारांश
यदि भारत को दुनिया का ग्रीन हब बनाना है तो हमें ध्यान केन्द्रित कर सोचना होगा कि हम कैसे अपनी शिक्षा एवं स्किलिंग सिस्टम की विभिन्न परतों में सस्टेनेबिलिटी को शामिल कर सकते हैं। व्यापार,कारोबार,उद्योग एवं बजट में आवंटन ऐसे होना चाहिए जिससे क्लीन टेक्नोलॉजी वाली ग्रीन इकॉनॉमी बनाने में मदद मिले। इसके साथ ही हमें युवाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान देना होगा ताकि वे इस बदलाव के मुताबिक आगे बढ़ सकें और बेहतर नौकरियां हासिल कर सकें।