नई दिल्ली – भारतीय पैरा एथलीट होकातो होतोज़े सेमा इंडियनऑइल नई दिल्ली 2025 वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अपने घरेलू मैदान पर दमदार वापसी करने जा रहे हैं। इस बार उन्होंने अपने अब तक के सर्वश्रेष्ठ थ्रो 14.88 मीटर से भी आगे निकलने का लक्ष्य साधा है। पेरिस 2024 पैरा ओलंपिक में ब्रॉन्ज और 2022 एशियन पैरा गेम्स में सिल्वर जीत चुके इस पैरा शॉट पुट खिलाड़ी ने एक बार फिर ऊँचाई छूने की ठानी है।होकातो की कामयाबी धीरे-धीरे बनाई गई मेहनत की कहानी है। 2023 नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने 13.72 मीटर का थ्रो कर अपने करियर को नई दिशा दी। इसके बाद 2024 एशियन पैरा गेम्स में 14.30 मीटर थ्रो के साथ सिल्वर मेडल अपने नाम किया। पेरिस 2024 पैरा ओलंपिक में 14.65 मीटर का शानदार थ्रो कर भारत को ब्रॉन्ज दिलाया और फिर बेंगलुरु में हुए इंडियन ओपन में 14.88 मीटर थ्रो के माध्यम से अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। आज वे देश के सबसे प्रेरणादायी पैरा एथलीट्स में गिने जाते हैं।अपनी तैयारी और सफर पर बोलते हुए होकातो ने कहा,हर दिन घंटों मेहनत करता हूँ। ताकत बढ़ाने और तकनीक सुधारने के लिए काम करता हूँ।उन्होंने आगे कहा, रिकॉर्ड तोड़ना सिर्फ ताकत का खेल नहीं है, इसमें धैर्य, सटीकता और अपनी सीमाओं से आगे बढ़ने का जज़्बा चाहिए। हर सुबह जब मैं ट्रेनिंग के लिए जाता हूँ, तो मेरा एक ही लक्ष्य होता है, दिल्ली में होने वाली इंडियनऑइल वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 15 मीटर की दूरी को पार करना। इसके लिए मैं पहले से कहीं ज्यादा मेहनत कर रहा हूँ।जैसे-जैसे दिल्ली इस ऐतिहासिक टूर्नामेंट की मेजबानी की तैयारी कर रहा है, होकातो पुणे के आर्मी पैरालंपिक नोड, बीईजी एंड सेंटर टीबी 2 दिघी कैंप में अपना पूरा ध्यान लगा रहे हैं। उनकी ट्रेनिंग में खास स्ट्रेंथ और फिटनेस वर्कआउट, एडवांस तकनीकी अभ्यास और रिकवरी सेशन्स शामिल हैं, ताकि बड़े दिन पर उनका प्रदर्शन अपने चरम पर हो। कोच भी मानते हैं कि उनकी निरंतरता, सहनशक्ति और थ्रो की लय पहले से कहीं बेहतर हुई है और अब वे अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ने के बेहद करीब हैं। इंडियनऑइल वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप 2025 भारत के लिए एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जहाँ दुनिया भर के खिलाड़ी खेल, संघर्ष और समर्पण की मिसाल पेश करेंगे। होकातो के लिए यह मुकाबला सिर्फ एक टूर्नामेंट नहीं है, बल्कि उनकी यात्रा का अगला कदम है, जहाँ वे एक सैनिक से पैरालंपियन बने और संदेह से निकलकर संकल्प तक पहुँचे। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मेडल जीतकर वे पहले ही अपनी पहचान बना चुके हैं