नई दिल्ली – भारत में चीन निर्मित वॉकी-टॉकी का बढ़ता उपयोग भारत सरकार के लिए एक गंभीर सुरक्षा चिंता का विषय बन गया है। भारत और म्यांमार के दूरदराज के इलाकों में सक्रिय विद्रोही समूहों, माओवादियों और सैन्य-विरोधी दलों द्वारा चीनी उपकरणों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है। यह समस्या केवल सीमावर्ती इलाकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देशव्यापी हो गयी है। महानगरों और अन्य शहरों में कुछ कुख्यात गिरोह भी इन चीन निर्मित वॉकी-टॉकी का उपयोग करने लगे हैं। चूँकि इन उपकरणों का उपयोग अवैध रूप से किया जा रहा है, यह नियामक ढांचे के अंतर्गत नहीं आता और इस प्रकार सरकार को लाइसेंस शुल्क और अन्य संबंधित राजस्व का नुकसान होता है, वह अलग! तकनीकी कमजोरियों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में चिंताएँ
चीनी वॉकी-टॉकी उपकरण बहुत सस्ते होते हैं, लंबी दूरी की क्षमता रखते हैं और उनमें हेरफेर किया जा सकता है। इसीलिए राष्ट्रविरोधी समूह इन उपकरणों को खरीदते नजर आ रहे हैं। ये उपकरण सैन्य ग्रेड रेडियो की तुलना में बहुत सस्ते हैं। इनकी कीमतें १,८०० रुपये से लेकर १६,००० रुपये तक हैं। इसलिए कम वित्तीय क्षमता वाले छोटे गिरोहों को भी यह वॉकी-टॉकी आसानी से मिल सकता है।
इन उपकरणों के साथ एक बड़ी चिंता यह है कि इन के साथ आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है और उनकी सीमा और कार्यक्षमता अनुमेय सीमा से ज़्यादा बढ़ाई जाती है। ऐसा करके देशद्रोही समूह इन वॉकी-टॉकीज़ के माध्यम से लंबी दूरी तक संवाद कर सकते हैं और उन्हे अवैध गतिविधियों का समन्वय करना आसान हो जाता है। सरकारी राजस्व एवं सुरक्षा कार्यों पर प्रभाव
छेडछाड किये गये वॉकी-टॉकी के व्यापक उपयोग से न केवल विद्रोही गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, बल्कि भारत सरकार को भारी राजस्व हानि भी होती है। इन उपकरणों के अवैध उपयोग से सरकार को लाइसेंस शुल्क और अन्य संबंधित राजस्व से हाथ धोना पडता हैं। इसके अतिरिक्त, दूरदराज के क्षेत्रों में इनका अनधिकृत उपयोग होने से राष्ट्र-विरोधी गिरोहों के संचार की निगरानी और अवरोधन जटिल बन जाता है। जाहिर तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा में यह बाधाएं हैं।
इन वॉकी-टॉकी द्वारा उत्पन्न खतरे से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा कई स्तरों पर प्रयास किए जाते हैं। जैमिंग उपकरणों को तैनात करना, वॉकी-टॉकी के प्रसारण को बाधित करना और इन उपकरणों का पता लगाकर उन्हें निष्क्रिय करना, इन सब के लिए सरकार सुरक्षा कर्मियों को शिक्षित करती है। दूरसंचार विभाग ने इस संबंध में २०१८ में एक नोटिस जारी किया था। नोटिस में कहा गया है कि बिना लाइसेंस वाले वॉकी-टॉकी या ४४६ मेगाहर्ट्ज के लाइसेंस-मुक्त रेडियो के लिए संबंधित धारक को डब्ल्यूपीसी विंग से मंजूरी लेनी होगी। वहीं, इस नोटिस में यह भी कहा गया था कि भारत में पॉवर आऊटपुट से छेडछाड करना गैरकानूनी है। हालाँकि, सरकार के इन प्रतिबंधों के बावजूद, भारत में चीन निर्मित वॉकी-टॉकी उपकरण आसानी से उपलब्ध होते हैं और सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। इन उपकरणों को भारत में तस्करी कर लाया जाता है। सुरक्षा बलों द्वारा इन शिपमेंट्स को बार-बार रोका गया है, फिर भी इन उपकरणों का प्रसार बेरोकटोक जारी है। खतरे को उजागर करने वाली घटनाएँ
भारत में कुख्यात समूहों द्वारा चीन निर्मित वॉकी-टॉकी उपकरणों के इस्तेमाल की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। अभी पिछले २२ जून को सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस की एक संयुक्त टीम ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक जगह पर छापा मारा और नकली नोट, प्रिंटर और वॉकी-टॉकी के ८ सेट जब्त किए। इसी तरह, मणिपुर के काकचिंग इलाके में सुरक्षा बलों ने हथियारों का एक बडा ज़ख़ीरा प्रकट किया और ३७ हथगोले सहीत वॉकी-टॉकी के दो सेट जब्त किए। इन घटनाओं से साफ़ पता चलता है कि इन उपकरणों का उपयोग कितना व्यापक हो गया है और आपराधिक गतिविधियों में वे किस तरह लिए जा रहे है।
इन वॉकी-टॉकी की त्वरित, वास्तविक समय सूचनाएं देने की बढ़ी हुई क्षमता ने देश भर में सुरक्षा अभियानों में काफी बाधा डाली है। राष्ट्र-विरोधी गिरोह इन उपकरणों से आपस में तुरंत समन्वय कर सकते हैं और इसका उपयोग देश पर हमले करने के लिए करते हैं। इससे ये गिरोह सुरक्षा बलों से एक कदम आगे रहते हैं। वॉकी-टॉकी के साथ बहुत आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है। इसलिए ये स्थिति और भी खतरनाक हो गई है।सरकार की प्रतिक्रिया और निर्णायक कार्रवाई की जरूरत
सरकार ने इन वॉकी-टॉकी से उत्पन्न खतरे को पहचाना है और इनके प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठा रही है। हालाँकि, इन उपकरणों की निरंतर आसान उपलब्धता और कम लागत सरकार के प्रयासों को कमजोर कर रही है। इन वॉकी-टॉकी के अवैध इस्तेमाल से न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है, बल्कि सरकार को भी भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है।
आतंकवादी समूहों को चीन निर्मित वॉकी-टॉकी का उपयोग करने से रोकने के लिए, भारत को इन उपकरणों के आयात, बिक्री और उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए और सीमावर्ती क्षेत्रों में उनकी गतिविधियों पर सख्ती से निगरानी रखनी चाहिए। इस तरह के प्रतिबंध से इन समूहों की संचार क्षमताएं बाधित होंगी, जिससे हमलों का समन्वय करने और व्यापक क्षेत्रों में खुफिया जानकारी साझा करने की उनकी क्षमता कमजोर होगी। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में, भारत को अपनी सीमाओं के भीतर इन उपकरणों के प्रसार को रोकने के लिए निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।