वियतनाम की राजधानी हनोई में एक इमारत में भीषण आग लगने से 50 लोगों की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि हनोई की एक नौ मंजिला इमारत में आधी रात को भीषण आग लग गई. आग की चपेट में आने से अब तक 50 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि कई लोग घायल बताए जा रहे हैं वियतनाम समाचार एजेंसी के हवाले से लिखा कि आग रात करीब 2 बजे लगी. इस नौ मंजिला इमारत में करीब 150 लोग रहते है. ये इमारत राजधानी के एक रिहायशी इलाके की तंग लगी में है. आग लगने के बाद राहत बचाव कर्मी मौके पर पहुंच गए और आग पर काबू पाने की कोशिश करने लगे.बचावकर्मियों ने करीब 70 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. इनमें से 54 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. आग लगने की इस घटना में कई बच्चों की भी जान जाने की खबर है. बताया जा रहा है कि आग लगने के बाद इमारत में घने गहरे धुंए के बादल छाए रहे जो दिन निकलने तक दिखाई दिया. एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, इमारत की छोटी बालकनियां लोहे से घिरी हुई थीं, अपार्टमेंट ब्लॉक में केवल एक ओर से ही निकलने की जगह मौजूद थी. इसके साथ ही इमारत में कोई इमरजेंसी गेट भी नहीं था.बता दें कि वियतनाम की राजधानी हनोई में पिछले 20 वर्षों में जनसंख्या चार गुना हो गई है. जिसके चलते छोटी-छोटी इमारतों में बड़ी संख्या में लोग रहने को मजबूर हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि रात लगभग 11 बजे लगी. उन्हें एक तेज़ धमाके की आवाज़ सुनी और उसके बाद इमारत से काला धुआं उठता हुआ देखा गया. एक परिवार का कहना है कि उन्हें अपनी खिड़की को अवरुद्ध करने वाली धातु की रेलिंग को तोड़कर, और पड़ोसी की इमारत पर सीढ़ी लगाकर भागना पड़ा. वहीं पास में रहने वाली एक महिला होआ ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, “मैंने मदद के लिए बहुत सारी चीखें सुनीं. हम उनकी ज्यादा मदद नहीं कर सके.” उन्होंने बताया कि, “अपार्टमेंट इतना बंद है कि भागने का कोई रास्ता नहीं है, पीड़ितों के लिए बाहर निकलना असंभव है.आग लगने की सूचना मिलते ही मौके पर दमकल की 15 गाड़ियां पहुंच गई. लेकिन वे काफी देर तक उस अपार्टमेंट ब्लॉक तक नहीं पहुंच सकी जा आग लगी थी. क्योंकि वहां पहुंचने का रास्ता बेहद संकरा था. बता दें कि इससे करीब एक साल पहले दक्षिणी वियतनाम के एक कराओके क्लब में आग लगने से 33 लोगों की मौत हो गई थी, जहां खिड़कियों पर ईंटें लगा दी गई थीं, जिससे भागने का रास्ता बंद हो गया था. बता दें कि थाईलैंड जैसे अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में इसी तरह की कई त्रासदियां हुई हैं, जहां बाद में पाया गया कि नियम या तो अपर्याप्त थे, या कई मामलों में लागू ही नहीं किए गए थे.