नयी दिल्ली -यकीनन चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के साथ दुनियाभर में तमाम बीमारियों पर काबू पाया गया है। तमाम महामारी बनने वाली बीमारियों को जड़ से खत्म किया जा चुका है। बहुत से गंभीर रोगों का इलाज मेडिकल साइंस के जरिए रोज होता है लेकिन दुनियाभर में कुछ बीमारियां ऐसी जरूर हैं, जिन पर लंबी रिसर्च के बाद भी अब तक मेडिकल साइंस कई रोगों का उपचार आसानी से नहीं कर पा रहा है।जिससे मरिजों को काफी तकलीफों से गुजरना पड़ता है।फिर चाहे वो कड़वी दवा हो या दवा की सुई। कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो कि वो अगर हो गईं तो उन्हें पूरी तरह ठीक तो नहीं किया जा पाता लेकिन उनकी ग्रोथ को कुछ हद तक रोक दिया जाता है। कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं, जो हो जाएं तो उसमें किसी को बचाना मुश्किल हो जाता है। कुछ ऐसे रोग हैं जो हो गए तो जिंदगीभर उन्हें ढोना होता है। ये स्थिति मरिजों के लिए काफी पीड़ादायक होती है। शरीर के अन्य भाग में शल्य चिकित्सा हो तो फिर भी उसे हमारा दिल दिमाग को स्वीकार करने में उतनी तकलीफ नहीं होती है, लेकिन जब बात सिर के अंदर दिमाग पर शल्य प्रक्रिया पर हो तो डॉक्टर और रोगी दोनो के लिए मुश्किल काफी अलग स्तर पर होती है। अब बिना बेहोश किए कुछ घंटो में ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी कर दी जा रही है।दिल्ली के द्वारका स्थित महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि यदि मरीज को बेहोश करके सर्जरी की जाती तो उसका नर्वस सिस्टम का कुछ हिस्सा गड़बड़ हो सकता था। जीवन भर के लिए अपंगता का शिकार हो सकता था। मेडिकल साइंस में इस तरह की सर्जरी को अवेक क्रेनियोटोमी कहा जाता है। इसका साधारण शब्दों में अर्थ है सचेत अवस्था में ब्रेन सर्जरी करना।न्यूरोसर्जन डॉ. मनीष कुमार ने एक मरीज के बारे में बताया कि एक मरीज के ब्रेन के जिस हिस्से में ट्यूमर था, वहीं उसकी सेंस वाली नर्व्स थी। यानी ब्रेन के उस हिस्से में बातचीत, समझने, महसूस करने, हाथ-पांव की ताकत और मैथमेटिकल कैलकुलेशन कैपेसिटी का सेंटर था। उन्होंने बताया, अगर मरीज को बेहोश करके यह सर्जरी की जाती तो इन एरिया में होने वाली हरकतें या फिर समस्याओं का पता ही नहीं हो पाता। मरीज जीवन भर के लिए दिव्यांग हो सकता था। उसके सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाती। इसलिए मरीज का इलाज अवेक क्रेनियोटोमी विधि से किया गया। सर्जरी के बीच-बीच में डॉक्टरों की टीम मरीज से बातचीत करती रही। इससे यह समझा जा रहा था कि कहीं ट्यूमर निकालने के दौरान मरीज को किसी तरह का नुकसान तो नहीं हुआ है। इस दौरान मरीज लोकल एनेस्थीसिया दिया गया था। इससे उसे दर्द का आभास नहीं हुआ। इस तरह की सर्जरी की सुविधा दिल्ली के कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध है।