गाजियाबाद- भारत की एक अग्रणी जनरल इन्शुरन्स कंपनी, टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने अपने राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के निष्कर्ष आज जारी किए, जिसमें लगभग 300 कार्डिओलॉजिस्ट्स के रिस्पॉन्सेस रिकॉर्ड किए गए। इस सर्वेक्षण में युवा भारतीयों में गंभीर हृदय बिमारियों का सामना करने की चिंताजनक प्रवृत्ति का खुलासा हुआ है, साथ ही प्रारंभिक चेतावनी के संकेतों के बारे में लोगों की अज्ञानता और अपर्याप्त वित्तीय तैयारी भी सामने आई है। यह सर्वेक्षण पिछले एक दशक में हृदय देखभाल में आए एक बड़े बदलाव को दर्शाता है। अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि किस प्रकार हृदय रोग युवा भारतीयों को तेज़ी से प्रभावित कर रहा है, 74% डॉक्टरों ने बताया कि उनके अधिकांश मरीज़ अब 50 वर्ष से कम आयु के हैं। वर्तमान में, 36% डॉक्टरों के पास आने वाले ह्रदय मरीज़ों की आयु 31-40 के बीच है, और 38% डॉक्टरों के पास 41-50 आयु वर्ग के हृदय मरीज़ आते हैं। एक दशक पहले 87% मामले 41 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के होते थे।सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बारे में, सीनियर एग्जीक्यूटिव वाईस प्रेसिडेंट और कंज्यूमर क्लेम्स के नेशनल हेड, श्री राजगोपाल रुद्रराजू ने कहा, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि भारत की हृदय संबंधी चुनौती मेडिकल और वित्तीय दोनों है। युवा लोगों में ह्रदय की बीमारी की बढ़ती घटनाओं का मतलब है कि परिवार इन समस्याओं के लिए भावनात्मक और आर्थिक दोनों रूप से तैयार नहीं होते हैं। पिछले पांच वर्षों में, कार्डियोलॉजी उपचार की लागत लगभग 65% से बढ़ी है। हैरानी की बात है कि 78% डॉक्टरों ने बताया कि मरीज़ सीने में दर्द या बेचैनी को अनदेखा कर देते हैं, जब कि यह हृदय संबंधी समस्याओं का सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक चेतावनी संकेत है। कई लोग सांस फूलने और किसी भी स्पष्ट कारण के बिना आने वाली थकान को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे निदान में देरी होती है। सर्वेक्षण में पता चला है कि, भारत में हृदय रोग की बढ़ती घटनाओं के पीछे का एक मुख्य कारण अस्वास्थ्यकर आहार के साथ-साथ उच्च तनाव भी है। इससे भी बदतर बात यह है कि कई मरीज़ हृदय को काफी नुकसान होने के बाद ही मेडिकल सहायता लेते हैं।