वाराणसी- पौराणिक कथाओं से भी प्राचीन शहर वाराणसी। इसके मध्य में स्थित है डालमिया भवन- वास्तुकला की एक ऐसी मिसाल जिसने इतिहास के उतार-चढ़ाव को करीब से देखा है। डालमिया भवन, अपनी समृद्ध विरासत और स्थापत्य भव्यता के साथ, उस बौद्धिक और सांस्कृतिक टेपेस्ट्री के प्रमाण के रूप में विद्यमान है जिसने सदियों से इस महान शहर को परिभाषित किया है। अब, एक साहसिक कदम के साथ, इस प्रतिष्ठित डालमिया कुल के पथप्रदर्शक, श्री कुणाल डालमिया ने एक नवाचारी निर्णय लेते हुए इस ऐतिहासिक धरोहर को एक शानदार बुटीक होटल में बदलने के लिए योजना तैयार की है। यह एक ऐसा प्रयास है जो वाराणसी के स्वरूप पर एक अमिट छाप छोड़ने का दम रखता है।सदियों से वाराणसी शिक्षा का एक उन्नत केंद्र, विविध दार्शनिक मतावलम्बियों का अखाड़ा व भारतीय संस्कृति की आधारभूमी रहा है। विचारक, कवि और शिक्षाविद् इस रहस्यमय शहर में आते रहे हैं और इसके पौराणिक आकर्षण और कला, संस्कृति और इतिहास की जीवंत टेपेस्ट्री से सम्मोहित हुए हैं। सेरामपुर के प्रतिष्ठित गोस्वामी परिवार द्वारा 1835 और 1845 के बीच बनाया गया डालमिया भवन इस आकर्षक और जादुई शहर के सार को समाहित करता है। इसकी वास्तुकला- इंडो-सारासेनिक और नियोक्लासिकल तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण- हमें उस समय में वापस ले जाती है जब भारत में ये वास्तुशिल्प कला विकसित हुई थी।वाराणसी की जीवंत हलचल के बीच स्थित वास्तुशिल्प की यह उत्कृष्ट कृति उन दिग्गजों की उपस्थिति का गवाह है जिनके योगदान ने भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार दिया है। डालमिया भवन के पवित्र हॉल ने एनी बेसेंट, महात्मा गांधी के पूर्व-महात्मा दिनों, सरोजिनी नायडू और आदरणीय रवींद्रनाथ टैगोर जैसे दूरदर्शी लोगों का स्वागत किया है। यहां तक कि हरिवंश राय बच्चन ने भी अपने काव्यात्मक चिंतन में इस प्रतिष्ठित निवास को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन सम्मानित अतिथियों की नामावली, जिन्होंने इसके हॉल की शोभा बढ़ाई है, एक ऐसा ऐतिहासिक प्रमाण है जो इस भवन के गरिमामय महत्व को रेखांकित करता है।डालमिया परिवार का वाराणसी से रिश्ता इस से भी कहीं और अधिक गहरा है। 1960 के दशक के उत्तरार्ध में, स्वर्गीय लक्ष्मी निवास डालमिया ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया जिसने उनकी विरासत को इस प्राचीन शहर के सांस्कृतिक ताने-बाने के साथ हमेशा के लिए जोड़ दिया। उन्होंने प्रतिष्ठित राजा गोस्वामी के स्वामित्व वाले आकर्षक गार्डन हाउस को अपना बना लिया। उनका इरादा यह था कि उनकी प्यारी मां नर्मदा डालमिया के लिए एक आदर्श निवास स्थान होगा।आज इस समृद्ध विरासत के संरक्षक के रूप में श्री कुणाल डालमिया सगर्व डालमिया भवन के केन्द्र बिन्दु हैं, जिसे अब उनकी माँ, सावित्री देवी डालमिया के सम्मान में स्नेहपूर्वक SABO नाम दिया गया है। वाराणसी की कला, संस्कृति और शिक्षा के प्रति डालमिया परिवार की प्रतिबद्धता अद्वितीय है। उनके परोपकारी प्रयासों ने शहर के परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। स्वर्गीय एल एन डालमिया ने उदारता का सराहनीय प्रदर्शन करते हुए अपने पिता दुली चंदजी डालमिया की स्मृति में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को एक उल्लेखनीय छात्रावास उपहार में दिया, जिसमें 275 छात्रों को रहने की सुविधा थी। यह शानदार प्रतिष्ठान भावी पीढ़ियों के माइंड को नर्चर करने के लिए परिवार की अटूट भक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ा है।डालमिया परिवार की उदारता यहीं नहीं रुकी। विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से हृदय को छू जाने वाले एक कदम के रूप में, विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक विज्ञान ब्लॉक बी.एच.यू. को दान किया गया। यह ब्लॉक, जिसे एक सर्वथा उपयुक्त नाम- “सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन”- दिया गया है। यह उस महिला को सच्ची श्रद्धांजलि देता है जो ताकत और लचीलेपन का प्रतीक थीं।अब, श्री कुणाल डालमिया एक ऐसे उद्यम की शुरुआत कर रहे हैं जो उनके परिवार के व्यापारिक साम्राज्य, के ए एच एम (KAHM) इंडस्ट्रीज में एक और रत्न जोड़ने की क्षमता रखता है। एक दृढ़ निश्चय के साथ, वे डालमिया भवन को एक शानदार बुटीक होटल में बदलना चाहते हैं, जो वाराणसी के केंद्र में अपनी तरह का पहला प्रयास है। यह महत्वाकांक्षी उद्यम अग्रणी तो है ही साथ ही यह उन ऐतिहासिक दीवारों में नई जान फूंक देगा जो समय के प्रवाह के साथ एक असाधारण कुलवंश के विकास की साक्षी रही हैं।वाराणसी अपने शाश्वत आकर्षण से दुनिया को मंत्रमुग्ध करता रहा है;ऐसे में डालमिया भवन का एक शानदार नये कलेवर में उभरना शहर के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा। यहां, जहां मिथक और वास्तविकता आपस में गुँथे हैं, एक नया अध्याय सामने आने वाला है – एक ऐसा अध्याय जो अतीत का सम्मान करेगा और साथ ही ऐसे भविष्य की शुरुआत करेगा जो वैभव, लालित्य और सांस्कृतिक विरासत की भावना को गले लगाता है। डालमिया भवन, जो अब SABO है, की यात्रा वाराणसी को अपनी आत्मा में गहराई से बसाए एक परिवार की स्थायी विरासत और एक ऐसे शहर का प्रमाण है जो कल की संभावनाओं को अपनाते हुए अपने अतीत को भी अपनाता है। SABO के जल्द ही विकसित होने वाले नये स्वरूप के सम्बन्ध में श्री कुणाल डालमिया कहते हैं-“इस समृद्ध विरासत की रक्षा करना और शिव और गंगा की मनमोहक नगरी वाराणसी की जीवंत चहलपहल के बीच ऐश्वर्य का आश्रय स्थल स्थापित करना मेरे लिए बेहद खुशी का स्रोत है। हर हर महादेव!”