नई दिल्ली – पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जलवायु परिवर्तन से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है । ऐसे में अधिकतर देश अब इस विषय पर सोच विकसित कर रहे हैं । यद्यपि विकासशील और विकसित देश अभी भी एकमत नही हो सके हैं । राजीव आचार्य कहते हैं कि बाकू, अजरबैजान में 11 से 22 नवंबर 2024 तक आयोजित सीओपी29 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई में कुछ ठोस कदम उठाए गए । हालांकि प्रमुख विकसित देशों की सुस्त प्रतिक्रिया और वित्तीय बाधाओं ने इसकी सफलता को सीमित कर दिया। सम्मेलन में तय किया गया कि विकसित देशों ने 2035 तक विकासशील देशों को हर साल 300 बिलियन डाॅलर देने का नया लक्ष्य तय किया, जो पहले के 100 बिलियन डॉलर से अधिक है। हालांकि इस राशि से क्रियान्वयन कैसे किया जाएगा यह अभी तय नहीं हो पाया है। वहीं, पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत कार्बन क्रेडिट व्यापार के लिए एक केंद्रीकृत प्रणाली लागू की गई है। यह देशों को अपने उत्सर्जन में कटौती के लिए वैश्विक स्तर पर क्रेडिट खरीदने और बेचने की अनुमति देगा। राजीव आचार्य के अनुसार अब ब्राजील में होने वाले COP30 से बड़ी उम्मीदें हैं कि ठोस नीतियों और कार्रवाई पर बल दिया जाएगा। वर्तमान में अमीर देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर राशि उपलब्ध कराने में देरी की है। पूर्व में किए गए समझौते के अनुसार 2020 तक $100 बिलियन देने में भी वे असफल रहे। यह विकासशील देशों के लिए निराशाजनक है। अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख उत्सर्जक देशों की धीमी प्रगति और अमेरिका की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता ने सम्मेलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को कमजोर किया। जिससे विकसित और विकासशील देशों के बीच विश्वास की खाई बनी रही, जिसने वास्तविक समाधान पर सहमति बनाने में कठिनाई उत्पन्न की ।जलवायु वित्त और तकनीकी सहायता में पारदर्शिता की भी कमी रही। हालांकि सम्मेलन के दौरान वैश्विक सहयोग की बातें की गईं, लेकिन कुछ देशों ने सक्रिय रूप से इसमें भागीदारी नहीं की। विशेष रूप से बड़े विकसित देशों के अनुपस्थिति ने इस सम्मेलन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए। ऐसे देशों के बिना, जिनके पास वैश्विक कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण भूमिका है, कुछ समझौते अधूरे रहे। सम्मेलन में यह भी देखा गया कि कुछ देशों के बीच आर्थिक असमानता को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सका। विकासशील देशों को अधिक प्राथमिकता देने के बजाय, कई बार समृद्ध देशों को ज्यादा लाभ मिलते हुए दिखाई दिए। सम्मेलन में यह रही भारत की विशेष भूमिका राजीव आचार्य कहते हैं कि भारत ने अपनी विशेष पहल और रणनीतियां सांझा की, जिनमें जलवायु अनुकूलन, ऊर्जा परिवर्तन और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किए प्रयासों पर जोर दिया। भारत ने विकासशील देशों के लिए “कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रेस्पॉन्सिबिलिटी” (CBDR) की वकालत की। इससे अन्य विकासशील देशों को प्रेरणा मिली। भारत के प्रयास जलवायु नेतृत्व को मजबूत करने में सहायक रहे। भारत सरकार (एमओईएफसीसी) और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) द्वारा आयोजित सहायक कार्यक्रम में इस बात पर विचार किया कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाओं को रोकने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में किस तरह से सुधार किया जा सकता है। यह सत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रयास में खर्च की लागत का 88 प्रतिशत हिस्सा इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए होता है। भारत ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के महत्व को रेखांकित किया। इस सत्र में यह भी चर्चा की गई कि 2050 तक सौर ऊर्जा की 20 गुना वृद्धि से वैश्विक ऊर्जा जरूरतों का 75% हिस्सा पूरा किया जा सकता है। भारत ने महिलाओं के नेतृत्व में जलवायु-अनुकूल और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देने पर एक सत्र आयोजित किया। सत्र में यह चर्चा की गई कि महिलाओं द्वारा स्वच्छ ऊर्जा समाधानों का कार्यान्वयन किस प्रकार से ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहतर अनुकूलन की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। साथ ही यह सामाजिक-आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है। वस्तुतः अब ब्राजील सम्मेलन नई दिशा को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा इसी पर सभी की निगाहे टिकी हैं ।