नई दिल्ली- साहित्यकार एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जीवाश्म ईंधन का उपयोग वैश्विक स्तर पर 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में लगभग 1.5% बढ़ा है। इसमें कोयले (1.6%) और तेल (2.5%) की खपत में वृद्धि हुई। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन अलग-अलग तरीके से देखने को मिल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन एक तरह से अब वैश्विक आपातकाल बन गया है। इसके कारण पृथ्वी पर जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा खतरे में है। हम जलवायु संकट के एक नए और खतरनाक चरण में प्रवेश कर रहे हैं। कई वर्षों से वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस खतरे की चेतावनी दी है कि जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग और ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण प्रकृति में हो रहे बदलाव के गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे।यह खुलासा ऑक्सफोर्ड एकेडमी के बायोसाइंस जर्नल में 8 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित एक शोध में किया गया है। इस शोध में बताया गया है कि 2023 में वैश्विक स्तर पर हरियाली में कमी 22.8 मेगाहेक्टेयर प्रति वर्ष से बढ़कर 28.3 मेगाहेक्टेयर प्रति वर्ष हो गई। जो कि अभी तक का तीसरा सबसे उच्चतम स्तर है। इसका एक बड़ा कारण जंगल की आग थी, जिससे 11.9 मेगाहेक्टेयर की हरे-भरे जंगलों को नुकसान पहुंचा। वहीं, 2023 में ऊर्जा से संबंधित वार्षिक उत्सर्जन 2.1% बढ़ा और पहली बार 40 गीगाटन कार्बन-डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन पहुंच गया। इधर, सर्वाधिक उर्जा उत्सर्जन करने वाले देशों की बात करें तो इसमें सबसे पहले चीन, दूसरे नंबर पर संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। ये देश इतनी उर्जा का उत्सर्जन कर रहे हैं जो कि वैश्विक उत्सर्जन का लगभग आधे से अधिक है। भारत भी इससे अछूता नहीं है ।राजीव आचार्य कहते हैं कि अंधाधुंध वाहनों , ए.सी . का प्रयोग , जंगलों की कटान , आधुनिकीकरण की दौड़ में हम लगातार ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित कर रहे हैं । यही नहीं जलवायु परिवर्तन का ही कारण है कि महासागरों का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर हैं। इसके कारण 2021 और 2023 की गर्मियों में समुद्री जीवों की सर्वाधिक मृत्यु हुई। इसके अलावा समुद्र का स्तर भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। जिसका कारण समुद्री तापमान में वृद्धि और 2023-2024 में बढ़ते एल नीनो तूफान हैं।वर्ष 2100 में तापमान बढ़ सकता है 2.7 डिग्री सेल्सियसराजीव आचार्य कहते हैं कि पिछले 50 वर्षों से वैश्विक तापमान में वृद्धि की सटीक भविष्यवाणी की गई थी और इसे वैज्ञानिकों के साथ जीवाश्म ईंधन कंपनियों द्वारा भी पहले से देखा गया था। इन सभी चेतावनियों के बावजूद हम अब भी गलत दिशा में जा रहे हैं। जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं और जुलाई 2024 में पृथ्वी पर अब तक के सबसे गर्म तीन दिन दर्ज किए गए। मौजूदा नीतियों के आधार पर हम वर्ष 2100 तक गर्मी के तापमान में लगभग 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़त देख रहे होंगे। जीवाश्म ईंधन के उपयोग को तेजी से कम करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके अलावा, मीथेन उत्सर्जन की कीमत तय करना और उसे कम करना जलवायु परिवर्तन को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।यह एक संतोषजनक बात हो सकती है कि इसके साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग भी बढ़ा है , जिसमें सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग 2022 की तुलना में 2023 में लगभग 15% तक की वृद्धि हुई है। राजीव आचार्य कहते है कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए हमे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना अनिवार्य है साथ ही अधिक से अधिक पेड़ लगाकर ही इस खतरे को कम कर सकते है ।और यह तभी संभव है जब जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता पैदा हो, इसके लिए सभी को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है ।