चेन्नई- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद आईसीएमआर का शीर्ष यक्ष्मा टीबी संस्थान इस रोग का पता लगाने के लिए रक्त, मल, मूत्र और लार के नमूनों का उपयोग कर बलगम मुक्त जांच पद्धति विकसित करने तथा उसे मान्यता देने की प्रक्रिया में है। राष्ट्रीय यक्ष्मा अनुसंधान संस्थान एनआईआरटी की निदेशक डॉ. पद्मप्रियदर्शिनी सी. ने कहा कि टीबी का पता लगाने के लिए सटीक, त्वरित गैर-बलगम आधारित जांच की फौरन जरूरत है।बच्चों, बुजुर्गों के मामले में या टीबी के ऐसे मामलों में जिनमें बलगम की जांच ज्यादा मददगार नहीं है, अन्य किसी नमूने मल, मूत्र, रक्त या लार का उपयोग टीबी का पता लगाने में किया जा सकता है। डॉ. पद्मप्रियदर्शिनी ने कहा कि छोटे बच्चों के बलगम के नमूने लेने में कठिनाई होती है। उनमें इस रोग का पता चलने की कम संभावना होने के चलते उन्हें इस गंभीर रोग का सर्वाधिक खतरा है। आईसीईआर-इंडिया के वैज्ञानिक निदेशक डॉ. सुभाष बाबू ने कहा कि बलगम में जीवाणु को ढूंढ कर टीबी का पता लगाया जाता है। लेकिन वैज्ञानिक यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि टीबी का जीवाणु पीड़ित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र को कैसे प्रभावित करता है। इस विषय में अनुसंधान करने के लिए आईसीईआर, एनआईआरटी का सहयोग कर रहा है। डॉ. बाबू ने कहा, हम रक्त आधारित बायोमार्कर्स जांच पद्धति विकसित करने की प्रक्रिया में हैं जो बच्चों में टीबी का पता लगाने के लिए सटीक जांच का आधार उपलब्ध कराएगा। उन्होंने कहा कि वयस्कों में रक्त आधारित जांच पद्धति टीबी के उपचार की नाकामी के खतरे के सामना कर रहे मरीजों के लिए भी उपयोगी होगा। साथ ही, रोग के फिर से पनपने के जोखिम का पता लगाने में भी मददगार होगा। रक्त बायोमार्कर्स ऐसी टीबी का पता लगाने में मदद करेगा जो फेफड़े से संबद्ध नहीं है तथा हड्डियों, मस्तिष्क या किडनी जैसे शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में टीबी के कुल रोगियों में करीब छह प्रतिशत बच्चे हैं। एनआईआरटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शिव कुमार ने कहा कि बच्चों में टीबी का पता लगाने के लिए कोई व्यावहारिक मानक जांच नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कमी को दूर करने के लिए एनआईआरटी ने बाल रोगियों में टीबी का पता लगाने की खातिर उनके मल के नमूने से डीएनए निकालने की एक पद्धति विकसित की है। उन्होंने कहा कि यह पद्धति अभी प्रयोगशाला में मान्यता पाने के चरण में है और क्षेत्र में इसका उपयोग किए जाने से पहले इसे कई अध्ययनों से गुजरना होगा।