जयपुर-राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने संसद और विधानसभाओं को लोकतंत्र के मंदिर बताते हुए कहा कि जनप्रतिनिधि वहां राजनीति से ऊपर उठकर जनहित के मुद्दों पर संवेदनशील होकर विचार करें। उन्होंने कहा कि संसद और विधानसभाओं में जो भी बहसें या कार्य हों, वह आमजन के सतत विकास के लिए हों। राज्यपाल मिश्र  राजस्थान विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। इसके साथ ही राज्यपाल ने विधानसभाओं के विधिवत सत्रावसान पर जोर दिया और कहा कि इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। मिश्र ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में पीठासीन अधिकारियों की महती भूमिका होती है और वह विधानमंडल सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकारों का एक तरह से अभिभावक भी होता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए पीठासीन अधिकारी अपनी प्रभावी भूमिका निभाएं। राज्यपाल ने विधानसभा में बैठकों की संख्या कम होने पर चिंता जताते हुए कहा कि सदस्य जनता से जुड़े मुद्दों पर पूरी तैयारी के साथ सदन में प्रभावी चर्चा करें। उन्होंने निजी सदस्य विधेयक को भी अधिकाधिक बढ़ावा दिए जाने पर बल दिया। मिश्र ने कहा कि राज्यपाल कोई व्यक्ति नहीं है, वह संवैधानिक संस्था है और उसे जब संवैधानिक आधार पर यह संतुष्टि हो जाती है कि अध्यादेश औचित्यपूर्ण है तभी वह उसे स्वीकृति प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि विधानसभाओं का विधिवत सत्रावसान हो और नया सत्र आहूत हो, इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि जी-20 में भारत की अध्यक्षता पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। उन्होंने कहा कि सभी विधाई संस्थाओं को अपने यहां बेहतर कानून बनाने का कार्य करना चाहिए। बिरला ने लोकसभा द्वारा स्वस्थ संसदीय परम्पराओं के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि प्रयास किया जाएगा कि देशभर में विधाई संस्थाओं में आचरण, नियम-प्रक्रियाओं, पंरपराओं में एकरूपता हो। उन्होंने संसदीय समितियों में दल से ऊपर उठकर लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए प्रयास किए जाने का आह्वान किया। राज्यसभा के उप सभापति डॉ. हरिवंश ने विधाई संस्थाओं की साख बढ़ाने के लिए कार्य करने की बात पर जोर देते हुए महात्मा गांधी के आत्मानुशासन को विशेष रूप से याद किया। उन्होंने कहा, विधाई संस्थाओं द्वारा कानून बनाना ही निदान नहीं है। प्रगति और विकास सतत साधना है, इसलिए सदन में गंभीर चर्चा और बहस का माहौल बने।