नई दिल्ली- प्रसिद्ध अंकशास्त्री और आध्यात्मिक विशेषज्ञ सिद्धार्थ एस कुमार ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) नागपुर में आयोजित ‘ICSSR विजन विकसित भारत@2047’ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। यह सम्मेलन भारत को एक विविध, न्यायसंगत और समावेशी समाज बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया। सम्मेलन में लैंगिक विविधता, समावेशी समाज और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर महत्वपूर्ण चर्चाएँ हुईं, जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाने पर जोर दिया गया। अपने शोध पत्र में सिद्धार्थ एस कुमार ने अंकशास्त्र और आध्यात्मिकता के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-स्वीकृति में सुधार पर प्रकाश डाला। इस अध्ययन में 40 ट्रांसजेंडर प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जिसमें यह पाया गया कि अंकशास्त्र और आध्यात्मिक साधनों को अपनाने से मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। DASS-21 स्केल के अनुसार, अध्ययन से पहले प्रतिभागियों का औसत तनाव स्कोर 24.8 (मध्यम से गंभीर स्तर) था, जो अंकशास्त्र और आध्यात्मिकता अपनाने के बाद 13.6 (हल्का तनाव) रह गया। इसी तरह, सामाजिक जुड़ाव (SCI स्केल) का स्तर 2.8 से बढ़कर 4.6 हो गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि आध्यात्मिकता और अंकशास्त्र ने प्रतिभागियों को समाज में अधिक स्वीकृति और समर्थन का अनुभव कराया।शोध में यह भी सामने आया कि अंकशास्त्र आधारित नाम परिवर्तन से प्रतिभागियों को अपनी पहचान को मजबूती से स्वीकारने में सहायता मिली। ध्यान, मंत्र जाप और ऊर्जा संतुलन जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया और मानसिक रूप से अधिक स्थिर रहने में मदद की। इस अध्ययन ने साबित किया कि जब व्यक्ति अपने संघर्षों को आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा मानकर आगे बढ़ते हैं, तो वे आत्म-सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ाने में सक्षम होते हैं।आईआईएम नागपुर में आयोजित इस सम्मेलन में डॉ. भीमराया मेट्री (निदेशक, IIM नागपुर) और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया (STPI) के महानिदेशक अरविंद कुमार ने भारत के भविष्य के विकास, उद्योग-अकादमिक सहयोग और समावेशी समाज के निर्माण पर अपने विचार साझा किए। सम्मेलन में LGBTQI+ कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, कॉर्पोरेट लीडर्स और स्टार्टअप उद्यमियों ने भाग लिया, जिन्होंने लैंगिक विविधता, मानसिक स्वास्थ्य और समावेशन पर अपने अनुभव साझा किए। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मणिपुरी फिल्म निर्माता सांता खुरई की फिल्म ‘नावा – द स्पिरिट ऑफ अतेय’ और प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर अभिनेता एवं लेखक रेवती ए का नाटक ‘वेल्लई मोझी’ प्रदर्शित किया गया, जिसने ट्रांसजेंडर समुदाय की वास्तविकताओं को उजागर किया।सम्मेलन के समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों ने भारत को एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई। सिद्धार्थ एस कुमार के शोध को सम्मेलन में विशेष रूप से सराहा गया, क्योंकि यह भारत के प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि अंकशास्त्र और आध्यात्मिकता केवल आस्था का विषय नहीं हैं, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य सुधार का एक प्रभावी साधन भी हो सकते हैं। इस अध्ययन से ‘विकसित भारत 2047’ की परिकल्पना को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक नया दृष्टिकोण मिला है।