नई दिल्ली – भारत में तंबाकू संकट की चपेट में जकड़े हुए लगभग 26.7 करोड़ लोग हैं, अनुमान है कि लगभग हर तीन में से एक भारतीय इसकी चपेट में है। तंबाकू जितने लोग छोड़ रहे हैं उससे ज़्यादा तंबाकू इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसी वजह से भारत को अपनी ‘विकसित भारत 2047’ के विजन को आगे बढ़ाने में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आज के दौर में तंबाकू छोड़ने की जो भी नीतियाँ बनाई गई हैं, वह कारगर नहीं हैं। भले ही उन्हें बनाने के पीछे मकसद सही हो पर समस्या का समाधान नहीं है। अपने समाज को मिलकर मौजूदा नीतियों पर गौर कर उसपर विचार करने की ज़रूरत है, ताकि तंबाकू छोड़ने और उसके नुकसान को कम से कम करने के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध विकल्पों को शामिल किया जा सके। फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल (पीएमआई) के दक्षिण एशिया और इंडोचाइना के क्लस्टर हेड अंकुर मोदी ने बताया कि टेक्नोलॉजी आधारित विकल्प और विज्ञान समर्थित नीतियाँ तंबाकू के संकट से निपटने में कैसे और भी बेहतर रूप में मदद कर सकती हैं, जिससे एक स्वस्थ और खुशहाल भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है।अपना विचार साझा करते हुए, फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल के साउथ एशिया और इंडोचाइना के क्लस्टर हेड अंकुर मोदी ने बताया कि कैसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी आधारित विकल्पों की अहम भूमिका तंबाकू के जाल से निकलने में सहायक हो सकती है और भारत को एक स्वस्थ तथा बेहतर भविष्य की ओर ले जाने में मदद कर सकती है।
प्रश्न: तंबाकू से होने वाली बीमारियाँ दुनियाभर के लोगों को हानि पहुंचा रहीं हैं। पिछले दो दशकों से इन पर काबू करने के उपाय इस्तेमाल किए तो जा रहे हैं, लेकिन फिर भी तंबाकू छोड़ने की दर धीमी है, समाप्त नहीं हुई है। क्या इसका कोई समाधान है?
उत्तर: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार आज दुनिया में तकरीबन 1.3 अरब तंबाकू इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। तंबाकू नियंत्रण नीतियाँ लगभग दो दशकों से अमल में लाई जा रही हैं, लेकिन बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तंबाकू इस्तेमाल करने वालों की संख्या स्थिर बनी हुई है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक तंबाकू से होने वाली 80 प्रतिशत से भी ज्यादा मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों एलएमआईसी (LMICs) में होंगी। इसलिए, इन देशों के लिए यह बेहद जरूरी है कि लाखों जानें बचाने के लिए नए तथा बेहतर कदम उठाएं जाए।
कई देश ऑटोमोबाइल और ऊर्जा के क्षेत्रों में शानदार उन्नति के गवाह रहे हैं। जिनके यहां नुकसान को कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी का अधिक इस्तेमाल किया गया है। इन्हीं सब से प्रेरणा लेते हुए यह जरूरी है कि कंपनियां और संबंधित हितधारक मिलकर काम करें, ताकि तंबाकू सेवन और धूम्रपान से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए विज्ञान आधारित बेहतर विकल्प पेश किए जा सकें और अपने-अपने देशों में हानि को न्यूनतम किया जा सके।जनजागरूकता बढ़ाना भी तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम करने की एक प्रभावी रणनीति हो सकती है। ज्यादातर यह समझा जाता है कि निकोटीन धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि निकोटीन भले ही आदत डालने वाला हो, लेकिन यह धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण नहीं है। असल में, तंबाकू के जलने/दहन से नुकसान पहुंचाने वाले विषैले पदार्थ निकलते हैं, जो इन बीमारियों का कारण बनते हैं।अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने यह प्रमाणित किया है, कि ऐसे बेहतर उत्पाद हैं जो तंबाकू को जलाने के बजाय केवल गर्म करते हैं, वह हानिकारक तत्वों के स्तर को लगभग 95% तक कम कर सकते हैं।उन्नत विज्ञान पर आधारित नीतियों, जनजागरूकता और हानि कम करने की रणनीतियाँ मिलकर तंबाकू के हानिकारक सेवन में तेजी से कमी लाने में मदद कर सकती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य बेहतर होने में काफी हद तक मदद मिल सकती है।प्रश्न: आपने अपनी पैनल चर्चा में उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा अहमियत देने और उन्हें सही विकल्प चुनने का अधिकार देने पर बात की। क्या आपको लगता हैं कि उपभोक्ता कम हानिकारक विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं?
उत्तर: किसी भी धूम्रपान करने वाले के लिए सबसे अच्छा होता है कि वह उसे छोड़ दे। मगर ज्यादातर लोग मजबूरन ऐसा नहीं कर पाते। इन लोगों को एक व्यावहारिक दृष्टिकोण और सिगरेट से दूर जाने के लिए स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उपभोक्ताओं की आवाज अक्सर उन बहसों में दब जाती है, जो धूम्रपान के बेहतर विकल्पों पर असमान नियम, प्रतिबंध और पूर्ण प्रतिबंध लगाने का कारण बनती हैं।
विभिन्न प्रकार के वैकल्पिक उत्पाद और तंबाकू छोड़ने की तकनीकें व्यक्तियों को तंबाकू छोड़ने के दौरान मदद करने में काफी असरदार साबित हुई हैं। जिन देशों में विकल्प दिए गए हैं, वहां धूम्रपान दर में गिरावट देखी गई है।उदाहरण के रूप में देखा जाए तो जापान में पिछले 10 वर्षों में विकल्पों की शुरुआत से सिगरेट की बिक्री में लगभग 46% की कमी हुई है। स्वीडन में कैंसर की घटनाएं यूरोपीय औसत के मुकाबले 41% कम हैं साथ ही धूम्रपान दर 5.6% है, इन सभी से साफ तौर पर सुरक्षित विकल्प अपनाने के फायदे दिखाई देते।
प्रश्न: विकसित भारत 2047 के विजन को साकार करने में विज्ञान और टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस विजन में तंबाकू क्षेत्र की क्या भूमिका है?
उत्तर: विकसित भारत 2047 का विजन विज्ञान और टेक्नोलॉजी की परिवर्तन लाने वाली भूमिका पर निर्भर करता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के लिए भी बेहद जरूरी है। यह विजन हम सभी को प्रेरित करता है कि तंबाकू की समस्या का समाधान निकालने और उन 1/3 भारतीयों की मदद के लिए मिलकर काम करें जो तंबाकू का सेवन करते हैं। इससे उन तंबाकू से जुड़े विषयों पर चर्चा को बढ़ावा मिलेगा, जो अक्सर हमारे सामाजिक ताने-बाने में नजरअंदाज किए जाते हैं।तंबाकू का सेवन करने वाले बड़ी आबादी को भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के बेहतरी के सफर में पीछे नहीं छोड़ा जा सकता।जैसे भारत ने ऑटोमोबाइल और ऊर्जा क्षेत्रों में हानि कम करने के लिए टेक्नोलॉजी समाधान अपनाए हैं, वैसे ही तंबाकू उद्योग में भी ऐसी ही पहल जरूरी है ताकि तंबाकू सेवन पर काबू किया जा सके। भारत, निम्न और मध्यम आय वाले देशों एलएमआईसी (LMICs) के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, जहां इनोवेटिव टेक्नोलॉजी को अपनाकर तंबाकू हानि में कमी की जा सके और तंबाकू छोड़ने पर ज़ोर देकर लोगों के जीवन को बेहतर किया जा सके।प्रश्न: भारत वैश्विक निवेश के लिए एक आकर्षक केंद्र बना हुआ है। एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के रूप में, भारतीय तंबाकू किसानों की उत्पादकता और आजीविका बढ़ाने में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) क्या भूमिका निभा सकता है?
उत्तर: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादन करने वाला देश है, इसका वार्षिक उत्पादन लगभग 800 मिलियन किलोग्राम है, साथ ही यह तंबाकू निर्यात करने वालों में सबसे प्रमुख भी है, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित होती है। इसके अलावा, भारत में तंबाकू उद्योग लगभग 4.5 करोड़ लोगों को खेती, प्रसंस्करण, निर्माण और निर्यात गतिविधियों में रोजगार मिलता है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भारतीय तंबाकू किसानों की उत्पादकता और आजीविका को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत का लंबा चौड़ा बाजार, जिसमें लाखों तंबाकू इस्तेमाल करने वाले हैं, स्थानीय किसानों के साथ निवेश की ज़रूरत को दिखाता है। साथ ही जरूरत है कि एफडीआई तंबाकू नीतियों को अधिक खुला और आकर्षक बनाए , जिससे किसान ज्यादा से ज्यादा आय अर्जित कर सकें और भारत के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा का सृजन हो।भले ही कुछ किसान अभी भी अपनी प्रथाओं में उलझे है, फिर भी एफडीआई उन्नत कृषि टेक्नोलॉजी को पेश कर सकता है, जिससे किसानों को फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करने में मदद मिल सके। पीढ़ियों के अनुभव को आधार बनाकर, एफडीआई बेहतर उत्पादकता, अच्छी गुणवत्ता वाली तंबाकू की खेती और तंबाकू के विकल्प वाली फसलों की खेती के सपने को साकार कर सकता है। कुल मिला कर कहें तो एफडीआई भारतीय किसानों को सशक्त बना,कर उत्पादकता को बढ़ा कर भारत को तंबाकू खेती में एक वैश्विक नेता के रूप में खड़ा कर सकता है।
