नई दिल्ली- तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन सैनिक कृषि विकास शिल्प केंद्र (पश्चिम बंगाल) संस्था द्वारा प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आयोजित हुआ. कार्यक्रम के मुख्य आयोजक टीजेएपीएसकेबीएसके संस्था के सचिव सौमेन कोले एवं अन्य सदस्य शामिल रहे, जिनमें पश्चिम बंगाल और भारत के 15 अन्य राज्यों के किसान, प्रभावित किसान, कृषि-तकनीशियन ने अपना-अपना योगदान दिया. श्री राम नाथ ठाकुर, माननीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री, भारत सरकार ने अपने निजी सचिव के. के. मिश्रा, सलाहकार, एनएसी, टीजेएपीएसकेबीएसके के माध्यम से अपना संदेश भेजा जिसमें उन्होंने भारत में प्राकृतिक खेती की आवश्यकता और इसके उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सरकारी समर्थन पर जोर दिया. नीति निर्माताओं, माननीय मंत्रियों, नौकरशाहों, वैज्ञानिकों, डोमेन विशेषज्ञों सहित प्रतिष्ठित अतिथियों ने इसके कार्यान्वयन के लिए अपने-अपने इनपुट प्रदान किए. संगोष्ठी में एमिटी विश्वविद्यालय के कुलपति और राष्ट्रीय सलाहकार समिति, टीजेएपीएसकेबीएसके के अध्यक्ष प्रो. पीबी शर्मा, यूपीटीयू के पूर्व कुलपति, टीजेएपीएसकेबीएसके के संरक्षक प्रो. आरके खंडाल, टीजेएपीएसकेबीएसके के एनएसी के सलाहकार और स्वालम्बन के निदेशक डॉ. नरेंद्र कुमार, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष कैप्टन विकास गुप्ता, यूएनओ के शांति राजदूत डॉ. के.एस. राणा, ओमान के एच. कमिश्नर-सल्तनत, आमोद के. कंठ, सेवानिवृत्त आईपीएस, प्रयास जेएसी के संस्थापक और संरक्षक, सौरभ शर्मा, आईएफएस, वन संरक्षक, एनसीटी दिल्ली सरकार, प्रो. जे के मेहता, डॉ लाल सिंह, राज्य निदेशक माई भारत, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू, मनीष सिंह निदेशक भारतीय रेलवे, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के मीडिया सलाहकार पुनीत गोस्वामी, संजीव बत्स व अन्य सम्मानित लोगों ने भाग लिया. विचार-विमर्श के दौरान प्राकृतिक खेती से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई जैसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का सपना है कि किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएं, शुरुआत में भारत के एक करोड़ किसानों को हमारी सदियों पुरानी खेती की तकनीकों को आधुनिक पारिस्थितिक तकनीकों और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के साथ अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, माइक्रोबियल लोड में सीएफयू (कॉलोनी बनाने वाली इकाइयों) को 10 से बढ़ाकर 20 प्रति ग्राम मिट्टी तक बढ़ाकर मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाना ताकि उपज को अधिकतम किया जा सके और लागत कम हो सके, इस प्रकार किसानों की आय में वृद्धि हो और कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से मुक्त स्वस्थ और पौष्टिक भोजन वाली फसलों के उपभोक्ता सुनिश्चित हों. हमारे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गांवों में रहता है जो अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, उन्हें अपने श्रम के लिए उचित मूल्य की आवश्यकता है, उनकी इनपुट लागत कम हो, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों, शाकनाशियों आदि से मुक्त हो, जो केवल प्राकृतिक खेती के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए सभी हितधारकों-कृषकों, कृषि-तकनीशियनों, नीति निर्माताओं, निष्पादकों, मीडिया, सामाजिक वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संगठनों और सभी संबंधितों द्वारा मिशन मोड पर प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए. विचार यह है कि लोगों को शिक्षित किया जाए, कौशल बढ़ाया जाए, सभी राज्यों में डेमो प्राकृतिक फार्म बनाए जाएं और उनके लिए अलग से बाजार उपलब्ध कराया जाए. समाज के सभी वर्गों को इस मिशन को आगे बढ़ाना चाहिए ताकि भारतीय मिट्टी को रासायनिक खादों और कीटनाशकों, शाकनाशियों से मुक्त किया जा सके, जिससे हमारे भूजल और हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा. हमारी फसलों को दुनिया में अत्यधिक स्वीकार किया जाएगा और हमारे कृषक अपनी अतिरिक्त फसलों को उच्च मूल्य पर निर्यात कर सकते हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. भारत में प्राकृतिक खेती करते हुए हम अन्य देशों को प्राकृतिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न उगाने की हमारी प्रणाली सिखा सकते हैं. मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर विचार-विमर्श करने वाले 300 से अधिक प्रतिभागियों ने संकल्प लिया है कि वे इस मौसम से अपने-अपने गांवों में प्राकृतिक खेती शुरू करेंगे और राष्ट्रीय संगोष्ठी से प्राप्त अनुभव से दूसरों को प्रेरित करेंगे.