नई दिल्ली – भारतीय ऑटो उद्योग अपने विशाल आकार के कारण अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभों में से एक है। इसका भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7% का योगदान है और यह लगभग 2 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है। 2029 तक उद्योग के 8-9% की वार्षिक दर से बढ़ने की उम्मीद है। यह वृद्धि ऑटो कंपोनेंट (वाहन कल-पुर्ज़ा) विनिर्माताओं के लिए भी स्वस्थ विकास दर्शाती है। ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, उम्मीद है कि चीन से होने वाले आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक मोटर्स से लेकर ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन तक के उन्नत कल-पुर्ज़ों के स्थानीयकरण को बढ़ावा देने के लिए भारतीय ऑटोमेकर और सप्लायर वित्त वर्ष 24-28 के दौरान ~ 58,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे।भारत में ऑटो एंसिलियरी उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5% हिस्सा है और 2026 तक इसका योगदान दोगुना से अधिक होने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 24 में, उद्योग ने 6 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार दर्ज किया, जिसमें से 50% से अधिक योगदान घरेलू मूल उपकरण निर्माताओं की आपूर्ति द्वारा दिया गया। घरेलू ऑटो एंसिलियरी क्षेत्र बेहद बिखरा हुआ और प्रतिस्पर्धी है। उद्योग का लगभग 80% संगठित क्षेत्र में आता है, जिसमें घरेलू इकाइयां मुख्य रूप से ओईएम को आपूर्ति करते हैं, जबकि शेष असंगठित क्षेत्र में कम मूल्य वर्धित उत्पादों की आपूर्ति करते हैं और प्रतिस्थापन मांग को पूरा करते हैं। ऑटो एंसिलियरी इकाइयां आम तौर पर ओईएम के पास स्थित होती हैं क्योंकि ओईएम कच्चे माल की समय पर खरीद चाहते हैं, और ऑटो एंसिलियरी इकाइयों का उद्देश्य होता है, डिलीवरी लागत को कम करना। टियर-I और II आपूर्तिकर्ता आम तौर पर ओईएम के संयंत्रों के आस-पास के क्षेत्र में स्थित होते हैं जबकि असंगठित इकाइयां देश भर में बिखरी हुई हैं।उत्तर: दिल्ली-गुरुग्राम फरीदाबाद.पश्चिम: मुंबई-पुणे-नासिक-औरंगाबाद.दक्षिण: चेन्नई-बेंगलुरु-होसुर भारत में उभरते ऑटो हब में श्री सिटी, अनंतपुर (आंध्र प्रदेश), साणंद (गुजरात) आदि शामिल हैं। ऑटो एंसिलियरी कंपनियों के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियां अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति और अर्थव्यवस्था में सार्थक योगदान के बावजूद, ऑटो एंसिलियरी कंपनियों को अक्सर विस्तारित भुगतान चक्र और ओईएम द्वारा भुगतान में देरी के कारण खतरनाक कार्यशील पूंजी अंतर का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे ज़्यादातर क्रेडिट बिक्री का विकल्प चुनते हैं। ऐसी वित्तीय चुनौतियां आपूर्ति शृंखला में व्यवधान पैदा कर सकती हैं, उत्पादन कार्यक्रम को बाधित कर सकती हैं और लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे परिदृश्य में, आपूर्ति शृंखला वित्तपोषण तरलता की समय पर प्राप्ति सुनिश्चित कर ऑटो एंसिलियरी कंपनियों को एक अनूठा समाधान प्रदान कर सकता है। बिल डिस्काउंटिंग समाधान के साथ एससीएफ कैसे बचाव करता है एससीएफ मध्य-बाज़ार की ऑटो एंसिलियरी कंपनियों को उनके चालान का शीघ्र भुगतान में मदद कर प्रभावी कार्यशील पूंजी समाधान प्रदान करता है। समाधान बैंक, एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियों द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं। हालांकि, बैंक जैसे पारंपरिक ऋणदाता अक्सर क्रेडिट जोखिम, कंपनी के व्यवसाय मॉडल के बारे में अपर्याप्त जानकारी और छोटे ऋणों की सेवा की अपेक्षाकृत अधिक लागत से जुड़ी परेशानी के कारण टियर 2/3 शहरों में नई और छोटी ऑटो एंसिलियरी इकाइयों को ऋण नहीं देना चाहते। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसी फर्मों के पास पारंपरिक फंडिंग प्राप्त करने के लिए आवश्यक साख और ऋण लेने का रिकॉर्ड नहीं होता। ऐसे परिदृश्य में, मिड-मार्केट ऑटो एंसिलियरी इकाइयां अक्सर एससीएफ समाधानों के लिए एनबीएफसी की ओर रुख करती हैं क्योंकि वे अधिक लचीले और ज़रूरत के अनुरूप ऋण समाधान प्रदान करते हैं, आपूर्ति श्रृंखला की गहरी समझ रखते हैं, और इन उद्यमों विशिष्ट आवश्यकताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी होते हैं। ऐसे फंड जहां निवेशकों का पैसा फंसा रहता है (टाईड अप फंड), उन्हें अनलॉक कर एनबीएफसी समय पर नकदी प्रवाह के साथ ऑटो एंसिलियरी कंपनियों को सशक्त बनाते हैं और उन्हें दिन-प्रतिदिन के खर्चों का प्रबंध करने, कच्चे माल में पुनर्निवेश करने, आगे के ऑर्डर हासिल करने और वृद्धि के अवसरों पर ध्यान देने में मदद करते हैं।ऑटो एंसिलियरी कंपनियां अपनी वित्तीय चुनौतियों को कम करने और परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए वेंडर एससीएफ कार्यक्रम के तहत बिल डिस्काउंटिंग (जिसे इनवॉइस डिस्काउंटिंग भी कहते हैं) समाधान का विकल्प चुन सकती हैं। पारंपरिक वित्तपोषण के विपरीत, बिल डिस्काउंटिंग समाधान बड़े ओईएम की साख का लाभ उठाते हुए बेहतर शर्तों पर कम लागत वाले ऋण की पेशकश करते हैं, जिससे यह ऑटो एंसिलियरी इकाइयों के लिए अत्यधिक सुलभ और किफायती हो जाता है। दीर्घकालिक अवधि में, यह ऐसे उद्यमों के लिए ऋण बाज़ार में बेहतर विश्वसनीयता और अपने व्यवसायों को स्थायी रूप से विकसित करने की क्षमता के कारण पारंपरिक ऋणदाताओं से अतिरिक्त वित्तपोषण प्राप्त करने का रास्ता भी बनाता है।खरीद बिल डिस्काउंटिंग (पीबीडी) समाधान या तो बैलेंस शीट पर या बैलेंस शीट से बाहर उपलब्ध कराया जा सकता है। बैलेंस शीट पर लेन-देन के तहत, एससीएफ समाधान प्रदाता कल-पुर्ज़ों की आपूर्ति के लिए ऑटो एंसिलियरी कंपनियों के इनवॉइस के आधार घरेलू ओईएम (एंकर) को ऋण देते हैं। यह ऐसी स्थितियों में सबसे उपयुक्त है जहां एंकर का भुगतान योग्य चक्र इनवॉइस भुगतान अवधि के साथ मेल नहीं खाता। दूसरी ओर, ऑफ-बैलेंस शीट व्यवस्था के तहत, एससीएफ समाधान ऑटो एंसिलियरी कंपनियों को घरेलू ओईएम (एंकर) पर उनके द्वारा उठाए गए चालान के खिलाफ सीधे ऋण प्रदान करता है, जिससे भुगतान की समय पर प्राप्ति सुनिश्चित होती है और उनके कार्यशील पूंजी प्रबंधन का अनुकूलन होता है। इसके अलावा, बिना रेटिंग वाली कंपनियां ऋण लेने के लिए अपने बिक्री बिलों (या इनवॉइस) का उपयोग कर बेहतर तरीके से ऋण प्राप्त कर सकती हैं। यह विधि उन्हें अपने प्राप्तियों (रिसीवेबल) को जल्दी नकदी में बदलने में मदद करती है, जिससे परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उनका नकदी प्रवाह बढ़ता है। ऋण के लिए ऐसे बिल पेश करके, ये कंपनियां, भले ही उनके पास औपचारिक क्रेडिट रेटिंग न हो, ऋण के अंतिम उपयोग को स्पष्ट रूप से चिह्नित कर ऋणदाता के जोखिम को कम करती हैं। इसके अलावा, यह रणनीति कंपनियों को समय के साथ क्रेडिट इतिहास के निर्माण में मदद कर सकती है, जिससे उन्हें भविष्य में ऋण की बेहतर शर्तें हासिल करने में मदद मिल सकती है।जैसे-जैसे ऑटो एंसिलियरी क्षेत्र बढ़ता जा रहा है, पीबीडी जैसे नवोन्मेषी वित्तीय समाधानों को अपनाना महत्वपूर्ण होगा। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, देश में इनवॉइस डिस्काउंटिंग परितंत्र आकार में 120 बिलियन डॉलर या ~ 10 लाख करोड़ रुपए प्रति माह का है। डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे आरबीआई समर्थित ट्रेड्स) के उभरने के साथ, उद्योग एक आदर्श बदलाव की ओर अग्रसर है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों इकाइयां इस परितंत्र में शामिल हो रही हैं।

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