झारखंड – देवघर शहर में स्थित सत्संग आश्रम ने जल संरक्षण का बेहतरीन मॉडल खड़ा किया है। अब केंद्र का जलशक्ति मंत्रालय इस मॉडल को पूरे देश तक पहुंचाने की तैयारी कर रहा है। पिछले दिनों देवघर आए केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने आश्रम का दौरा कर जल संरक्षण के लिए यहां हुए नवाचार की जानकारी ली। यह सत्संग आश्रम 40 एकड़ में फैला है। यहां बारिश का जल संरक्षित करने, वेस्ट वाटर को रिसाइकिल कर पुन उपयोग लायक बनाने और भूमिगत जल के स्तर को बेहतर करने के लिए वर्ष 2010 से कोशिशें शुरू हुईं।आज की तारीख में यहां हर साल तकरीबन आठ से नौ करोड़ लीटर पानी का संचय हो रहा है और इससे प्रतिदिन लगभग छह हजार लोगों के लिए पेयजल और रोजमर्रा की बाकी जरूरतों के लिए पानी का इंतजाम होता है। इस आध्यात्मिक आश्रम में प्रत्येक वर्ष आठ लाख श्रद्धालु आते हैं और उनकी जरूरतों के लिए बाहर से पानी की जरूरत नहीं होती। आश्रम परिसर में खुले भू-भाग और यहां स्थित भवनों की छत से गिरने वाले बारिश के पानी को स्टोर करने यहां 20-20 फीट के 200 विशेष कूप बनाए गए हैं। बारिश का सारा पानी इन्हीं कूपों में जमा होता है। इस आश्रम में प्रतिदिन हजारों लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है। इस दौरान साफ-सफाई से लेकर बर्तन धोने के लिए जिस पानी का इस्तेमाल होता है, उसे व्यर्थ नहीं बहने दिया जाता। वेस्ट वाटर का ट्रीटमेंट कर उसे फिर से उपयोग में लाया जाता है। आश्रम में जल संरक्षण के इस अभियान से जुड़े एक तकनीकी पदाधिकारी ने बताया कि ट्रीटमेंट की प्रक्रिया भी नैसर्गिक है। यहां बड़े-बड़े टैंक बनाए गए हैं, जहां इस्तेमाल किए गए पानी का भंडारण किया जाता है। सबसे पहले टैंक में पानी से तैलीय पदार्थ को अलग किया जाता है। उसके बाद तेल रहित पानी को दूसरे टैंक में गिराया जाता है। ट्रीटमेंट की प्रक्रिया में एक टैंक में कैनन का पौधा होता है। यह पौधा पानी का ट्रीटमेंट करता है। इस पौधे की जड़ में कीड़ों को मारने की क्षमता है। इसके बाद अलग टैंक में पानी को संग्रहित किया जाता है, जो धूप की किरणों से स्वच्छ हो जाता है। इस पानी का उपयोग बागवानी में किया जाता है। इससे भूमिगत जल का स्तर भी बखूबी बना रहता है। बता दें कि इस सत्संग आश्रम की स्थापना 19वीं-20वीं शताब्दी के विख्यात आध्यात्मिक गुरु ठाकुर अनुकूल चंद्र ने की थी। वर्ष 2010 में आश्रम के प्रधान आचार्य ने अगर हमने जल नहीं बचाया तो यहां आने वाले व्यक्तियों को पानी नहीं मिलेगा और परिसर में पौधे भी जीवित नहीं रह पाएंगे। उन्होंने बारिश के जल के संरक्षण का अभियान शुरू कराया। इसके बाद 2010 से 2014 तक बगैर किसी सरकारी सहायता के यहां जल संरक्षण का आदर्श मॉडल खड़ा हो गया। अब आश्रम के आसपास के इलाकों का भी भूमिगत जल स्तर काफी अच्छा हो गया है। जल संरक्षण के इस मॉडल को भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2020 में नेशनल वाटर अवार्ड के लिए चुना था।