नई दिल्ली- राजधानी नई दिल्ली स्थित गोएथे-इंस्टिट्यूट में संगीतप्रेमियों ने पंडित चतुर लाल की 99वीं जयंती के उपलक्ष्य में उन्हें श्रद्धांजलि दी। गौरतलब है कि पंडित चतुर लाल ने तालों की जादुई भाषा सेे भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाई, आज भी दुनिया भर में स्मरणीय हैं। 1950 के दशक में पंडित रवि शंकर और उस्ताद अली अकबर खान के साथ पश्चिमी देशों में भारतीय ताल का प्रथम परिचय देने वाले पंडित चतुर लाल का जर्मनी से विशेष संबंध रहा है। इस वर्ष की संध्या विशेष रूप से उनके परिवार (पंडित चरणजीत और मीता चतुर लाल) द्वारा बड़े प्रेमपूर्वक संयोजित की गई थी, जिसमें कविता, चिंतन, फिल्म और सजीव संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिला। कार्यक्रम में संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अभा डालमिया, जे.के. ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के निदेशक सुरेन्द्र मल्होत्रा और आयोजकद्वय पंडित चरणजीत एवं मीता चतुर लाल उपस्थित रहे। गोएथे-इंस्टिट्यूट की निदेशक डॉ. मार्ला स्टुकेनबर्ग ने गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया। इसके पश्चात सुरेन्द्र मल्होत्रा ने पंडित जी की स्मृतियों को साझा करते हुए एक भावपूर्ण वक्तव्य दिया गया। संध्या की संगीतमयी पराकाष्ठा तब देखने को मिली, जब ब्रह्मांड : एक आलौकिक संगीतमयी अनुभव, में उनके पौत्र और युवा तबला सम्राट प्रशु चतुर लाल के नेतृत्व में 35 मिनट की विशेष प्रस्तुति दी गई। इस प्रस्तुति में शौनक बनर्जी (घटम), यशकृत सिंह (कीबोर्ड), तथा रोहन प्रसन्ना (सरोद) ने भी सम्मिलित होकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रशु ने कहा, ब्रह्मांड केवल संगीत नहीं यह एक अर्पण है। यह वह भाषा है जिससे मैं अपने दादा से संवाद करता हूं। पंडित चरणजीत चतुर लाल ने कहा, जैसे ही हम पंडित जी के शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, यह स्पष्ट होता है कि उनकी विरासत केवल संगीत तक सीमित नहीं रही वह सांस्कृतिक, वैश्विक और कालातीत रही है। इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की गई, भारत सरकार पंडित चतुर लाल के जन्मशताब्दी वर्ष 2026 में उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी करेगी। यह टिकट अप्रैल 2026 में आयोजित होने वाले शताब्दी समारोह के भव्य समापन के अवसर पर जारी किया जाएगा।
संध्या का एक अत्यंत मार्मिक क्षण रहा — पंडित जी की पौत्री श्रुति चतुर लाल द्वारा रचित मौलिक कविता, जिसने वंश, विरासत और लय की आत्मा को स्वर दिया। इसके बाद इकोज ऑफ बीट्स नामक 16 मिनट की एक विशेष ऑडियो-विज़ुअल प्रस्तुति दिखाई गई, जिसमें पंडित जी के जीवन-दर्शन, यात्रा और दुर्लभ फुटेज को सम्मिलित किया गया था। श्रुति चतुर लाल ने कहा, यह केवल एक उत्सव नहीं, एक स्मरण है। हर ताल एक कहानी कहती है, हर मौन उनके स्पंदन को जीवित रखता है।