हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनके पास सिर छुपाने के लिए छत तक नहीं होती, जो खुले आसमान के नीचे यह सर्द रातें गुजारने के लिए मजबूर होते हैं। हालांकि, सरकार रैन बसेरों के रूप में हर साल ऐसे लोगों के लिए सिर छुपाने का इंतजाम करती है, बावजूद इसके दिल्ली की सडक़ों पर ऐसे हजारों लोग मिल जाएंगे जो खुले आसमान के नीचे यह सर्द रातें गुजारने के लिए मजबूर होते हैं। जिसके चलते हर साल कई लोगों की मौत भी हो जाती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कमी कहां है। क्यों हर साल खुले में सडक़ पर सो रहे लोगों की या तो ठंड या फिर किसी हादसे में मौत हो जाती है। बात साल 2011 की जनगणना की कि जाए तो इसके अनुसार दिल्ली के 221 रैनबसेरों की आधिकारिक क्षमता लगभग 17 हजार है जो कि राजधानी की आधी बेघर आबादी के लिए काफी कम हैं। वहीं रैनबसेरों में बदइंतजामी से बेघरों की दिक्कतें ज्यादा बढ़ जाती हैं। ऐसे रैन बसेरे भी बड़ी संख्या में हैं जहां क्षमता के हिसाब से सुविधाओं की बेहद कमी है। इसके अलावा व्यवस्था में कमी के चलते कहीं क्षमता से ज्यादा लोग रैन बसेरों में सोते हैं तो कई नाइट शेल्टर खाली पड़े रहते हैं। पिछले करीब 1 महीने से नाइट शेल्टर होम में रह रहे अजय कुमार ने बताया कि वह बिहार से काम के सिलसिले में दिल्ली आए थे, लेकिन पिछले करीब 1 महीने से काम नहीं है, वह दिव्यांग है और पहले एक कंपनी में गार्ड की नौकरी करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते नौकरी चली गई। जिसके बाद रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। इसीलिए वह इस शेल्टर होम में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि सभी सुविधाएं यहां पर हैं, ठंड से बचाव के लिए कंबल भी दिए जा रहे हैं, साथ ही पीने के लिए गर्म पानी की भी व्यवस्था है। हालांकि नहाने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है। वहीं, पिछले 1 साल से दिल्ली में रह रहे रामू ने बताया कि करीब 4 महीनों से वह इस नाइट शेल्टर में अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। शाम को 5 बजे करीब वह इस नाइट शेल्टर में आ जाते हैं। दिन में अगर कोई काम मिल जाता है, तो वह काम कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि सर्दियों में ठंड से बचाव के लिए नाइट शेल्टर में अच्छे इंतजाम है, कंबल बिस्तर की अच्छी व्यवस्था है, दो वक्त का खाना भी मिल जाता है।
दिल्ली में बेघरों के मदद के लिए दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) की तरफ से करीब 209 स्थाई नाइट शेल्टर यानी रेन बसेरे चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा 190 रैन बसेरे टैंटों में भी चल रहे हैं। जहां पर बेघर लोगों के रहने की और इन सर्द रातों में रुकने की व्यवस्था की गई है। इस ठिठुरती सर्दी में इन रैन बसेरों में बचाव के लिए क्या कुछ इंतजाम है, यह जानने के लिए टीम विराट वैभव ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कश्मीरी गेट, आसिफ अली रोड, जीबी पंत अस्पताल के पास बने नाइट शेल्टर होम में पहुंची। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास बने 18 लोगों की क्षमता वाले नाइट शेल्टर में 37 लोग सोते हुए मिले। वहीं, इसके विपरीत आसिफ अली रोड स्थित पेट्रोल पंप के सामने बने 16 लोगों की क्षमता वाले अस्थाई शेल्टर में मात्र 14 लोग सोते हुए मिले। जबकि, डूसिब द्वारा संचालित इन नाइट शेल्टरों के अलावा भी लोग डिवाइडर, पटरी आदि पर खुले में सोत हुए मिले। इस दौरान हमदर्द चौक पर डिवाइडर पर सो रहा एक व्यक्ति किसी वाहन की चपेट में आ गया। जिसके चलते मौके पर ही उसकी मौत हो गई। कुछ वक्त बाद पुलिस उसके शव को उठकार एम्बुलेंस में ले गई। वहीं, दूसरी ओर जीबी पंत अस्पताल के पास बने नाइट शेल्टर के केयरटेकर विकास कुमार और मोहम्मद सुफियान ने बताया कि फिलहाल यहां बने दो अस्थाई और एक स्थाई शेल्टर 20 और 16  लोगों के रुकने की व्यवस्था की हुई है। उन्होंने बताया कि लोगों के लिए बिस्तर, कंबल, दो टाइम का खाना, नहाने, पीने के पानी आदि चीजों की व्यवस्था इस शेल्टर होम में की गई है। सुबह करीब 12 बजे और रात को 8 बजे खाना दिया जाता है।